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________________ (७६) गजल रखता नहीं तनकी खबर, अनहद बाजा बाजिया। घट बीच मंडल बाजता, बाहिर सुना तो क्या हुआ। जोगी तो जंगम से बड़ा, बहु लाल कपड़े पहिरता। उस रंगसे महरम नहीं, कपड़े रंगे तो क्या हुआ ।।१।। काजी किताबैं खोलता, नसीहत बतावै और को। अपना अमल कीन्हा नहीं, कामिल हुआ तो क्या हुआ॥२॥ पोथी के पाना बांचता, घर-घर कथा कहता फिरै । निज ब्रह्म को जी हा वहीं, पाटणा हुआ तो क्या हुआ॥३॥ गांजा भांग अफीम है, दारू शराबा पोशता। प्याला न पीया प्रेमका, अमली हुआ तो क्या हुआ ।। ४॥ शतरंज चोपर गंजफा, बहु खेल खेलें हैं सभी। बाजी न खेली प्रेमकी, जुवारी हुआ तो क्या हुआ॥५॥ 'भूधर' बनाई वीनती, श्रोता सुनो सब कान दे। गुरुका वचन माना नहीं, श्रोता हुआ तो क्या हुआ।। ६॥ अरे जीव ! तुझे अपने तन की कुछ भी खबर नहीं है । तेरे अन्तर में अनाहत नाद हो रहा है, उसे तूने वहाँ नहीं सुना जहाँ बज रहा है, गूंज रहा है, और अगर तूने उसे बाहर सुना, तो उससे क्या परिणाम निकला? वह जोगी जो लाल वस्त्र धारणकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर विचरण करता रहता है, वह स्वयं अगर उस रंग में नहीं रंगा, उस रंग का रहस्य न समझा/न जाना तो उसके कपड़े रंगने मात्र से क्या होगा? कुछ भी नहीं होगा। काजी (धर्मगुरु) किताबें खोल -खोलकर अन्यजनों की तो उपदेश देता है पर खुद उसने उन पर आचरण नहीं किया, तो वह योग्य हुआ तो भी क्या लाभ? भूधर भजन सौरभ १०५
SR No.090108
Book TitleBhudhar Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages133
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size2 MB
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