________________ इदि गुणमम्गणठाणे भावा कहिया पबोहसुयमुणिणा। सोहंतु ते मुणिंदा सुयपरिपुण्णा दु गुणपुण्णा / / 116|| इति गुणमार्गणास्थाने भावा कथिता प्रबोधनुतमुनिना। शोधयन्तु तान् मुनीन्द्राः श्रुतपारेपूर्णास्तु गुणपूर्णाः / / अन्वयार्थ - (इदि) इस प्रकार (गुणमग्गणठाणे) गुणस्थान और मार्गणा स्थानों में (पबोहसुयमुणिणा) प्रबोध सहित श्रुतमुनि ने (भावा) भाव (कहिया) कहे।यदि कहीं त्रुटि रह गई हो तोते) उनको (गुणपुण्णा) गुणपूर्ण और (सुयपरिपुण्णा) श्रुत से परिपूर्ण (मुर्णिदा) मुनीन्द्र (सोहंतु) शुद्ध करें। इति मुनि-श्रीश्रुतमुनि-कृता भावविभंगी समाप्ता (144)