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संदृष्टि नं. 62
ज्ञानत्रय भाव (41) सम्यम्जान 3 में 41 भाव होते है जो इस प्रकार है औपशमिक भाव 2, क्षायिक सम्यक्त्व, क्षायिक चारित्र, ज्ञान, दर्शन 3, क्षायो. लन्धि 5, वेदक सम्यक्त्व, संयमासयम, सरामसयम, गति 4, कषाय 4, लिंग, लेश्या 6, असंयम, अज्ञान, असिद्धत्व, जीवत्व, भव्यत्व । गुणस्थान अविरत आदि नौ होते है अर्थात् (4-12)
अभाव
गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति देशसंयत 21 " ) |
भाव "
)
|10 (पूर्वोक्त 5+6 अविरत व्यु- संयमासंयम)
318 "
)
प्रमत्त संयत
To (संयमासयम, नरकगति, तिर्यञ्चगति, देवगति, अशुभ लेश्या ३ असंयम, उपशम चारित्र, सायिक चारित्र)
गुणस्या नोक्त) | 10 (पूर्वोक्त)
अप्रमत्त संयत
(गुणस्थानवत् दे. संदृष्टि -10
अपूर्व- 10 करण
13110 पूर्वोक्त +पीत पद्म लेश्या, वेदक सम्यक्त्व)
"
)
| 13 (पूर्वोक्त)
अनिव
| 28 ( त्तिकरण | गुणस्थानवत् सवेद | दे. संदृष्टि ।
अनिवृ- 31 " त्तिकरण
20 "
)
16 (पूर्वोक्त 13 +3
वेद)
अवेद |
.
|
(112)