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संदृष्टि नं. 61
अज्ञानत्रय भाव 34
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क्षायो. अज्ञानक्य में 34 भाव होते है वे 34 भाव इस प्रकार है कुज्ञान 3, दर्शन 2, लब्धि 5 गति 4, कषाय 4, लिंग 3, लेश्या 6, मिध्यात्व, असंयम अज्ञान, असिद्धत्व, पारिणामिक भाव 3 | गुणस्थान आदि के दो होते है । संदृष्टि इस प्रकार है - गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति
भाव
अभाव
मिथ्यात्व 2 (मिथ्यात्व 34 ( उपर्युक्त )
अभव्यत्व)
सासादन 3 (कुञ्ज्ञान 3 ) 32 ( उपर्युक्त )
गुणस्थान भाव व्युच्छिति अविरत
केवलणाणं दंसण खाइणदाणादिपंचकं च पुणो । कुमइति मिच्छ मभव सण्णाणतिमम्मि णो संति ||94|| केवलज्ञानं दर्शनं क्षायिक दानादिपंचकं च पुनः ।
कुमतित्रिकं मिथ्यात्त्वमभव्यत्वं संज्ञानत्रिके नो सन्ति ॥
कन्यार्थ :- (सुण्णाणतिगम्मि) सम्यग्ज्ञान त्रिक में (केवलणाणं दंसणं) केवलज्ञान, केवल दर्शन, (खाइणदाणादिपंचकं) क्षायिक दानादि पांच लब्धि, (कुमइति) कुमति, कुश्रुत, विभंगावधिज्ञान (मिच्छ मभव्यं) मिथ्यात्व, अभव्यत्व (णो संति) नहीं होते हैं ।
संदृष्टि नं. 62
ज्ञानत्रय भाव (41)
सम्यग्ज्ञान 3 में 41 भाव होते है जो इस प्रकार है औपशमिक भाव 2, क्षायिक सम्यक्त्व, क्षायिक चारित्र, ज्ञान 4, वर्शन 3, नधि, वेदक सम्यक्त्व, संयमासंयम, सरागसंयम, गति 4, कषाय 4, लिंग 3, लेश्या 6, असंयम, अञ्ज्ञान, असिद्धत्व, जीवत्व, भव्यत्व । गुणस्थान अविरत भादि नौ होते है अर्थात् (4-12)
भाव
36 (गुणस्थानवत् दे.
6
( गुणस्थानवत् संदृष्टि 1) दे. संदृष्टि 1)
0
(111)
2 (मिथ्यात्व
अभव्यत्व)
अभाव
5 (मनः पर्यय ज्ञान, संयमासंयम, सराग संयम, उपशम चारित्र, शायिक चारित्र)