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करना, पुण्य के लिए नदी, तालाब, समुद्रों में स्नान करना, संकान्ति में तिल लगाकर स्नान करना, ग्रहणादि पर दान देना, सन्ध्या के समय मौन धारण करना, इन सब लोक मूढ़ताओं को छोड़ो।
ऐहिकाशावशित्त्वेन कुत्सितो देवतागणः ।
पूज्यते भक्तितो बाढं सा देवमूढ़ता मता ॥४०५॥ इस लोक की आशा के वशवर्ती होकर कुदेवताओं की जो भक्ति पूर्वक पूजा की जाती है, वह देवमूढ़ता मानी गई है ।
दृष्ट्वा मंत्रादिसामर्थ्य पापि पाषण्डिचारिणाम् ।
उपास्तिः क्रियते तेषां सा स्यात्पाषण्डिमूढता ॥४०६॥' पापी पाखण्डी के रूप में विचरण करने वालों की मंत्रादि की सामर्थ्य के अनुसार उनकी जो उपासना की जाती है, वह पाखण्डिमूढ़ता है।
ज्ञानं पूजा तपो वित्तं कुलं जातिर्बलं वपुः ।
एतानाश्रित्य गवित्वं तन्मदाष्टकमिष्यते ॥४०७॥ ज्ञान, पूजा, तप, धन, कुल, जाति, बल और शरीर का आश्रय कर गर्व करना, आठ प्रकार का मद कहा गया है ।
कुदेवः कुमतालम्बी कुशास्त्रं कुत्सितं तपः।।
कुशास्त्रज्ञः कुलिंगीति स्युरनायतनानि षट् ॥४०॥ कुदेव, कुमतालम्बी, कुशास्त्र, कुतप, कुशास्त्र का ज्ञाता और कुलिंगो, ये छः अनायतन होते हैं।