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जीवाजीवास्रवा बन्धसंवरौ निर्जरा तथा।
मोक्षश्चेति सुतत्वानि सप्त स्युर्जनशासने ॥३८४॥ जैन शासन में जीव, अजीव, पास्तव, बंध, संवर, निर्जरा तथा मोक्ष ये सात तत्त्व हैं ।
चेतनालक्षणो जीवोऽमूर्तोऽनाद्यविनाशकः। अजीवः पंचधा ज्ञेयः पुद्गलादिप्रभेदतः ॥३८५॥
चेतना लक्षण वाला जीव है, जो कि अमूर्त, अनादि और अविनाशी है । पुद्गलादि के भेद से अजीव पांच प्रकार का जानना चाहिए।
भावास्रवो भवेज्जीवो मिथ्यात्वादिचतुष्टयात।
ततो द्रव्यात्रवो यो सौ कर्माष्टकसमाश्रयः ॥३८६॥ मिथ्यात्वादि चार से जीव के भावास्रव होता है। जो आठ कर्मों के आश्रित होता है, वह द्रव्यास्रव है।
बध्यते कर्म भावेन येन तदभावबन्धनम् ।
जीवकर्मप्रदेशानामाश्लेषो द्रव्यबन्धनम् ॥३८७॥ जिस भाव से कर्म बंधता है, वह भाव बन्ध हैं । जीव और कर्म के प्रदेशों का चिपक जाना द्रव्य बन्ध है ।
स प्रकृतिप्रदेशाख्यस्थित्यनुभागभेदभाक् ।
योगवादिमौ स्यातां कषायद्वौं तदुत्तरौ ॥३८८॥
वह बन्ध प्रकृति, प्रदेश, स्थिति और अनुभाग वाला है। योग से प्रकृति और प्रदेशबन्ध तथा कषायों से स्थिति और अनुभाग बन्ध होते हैं।