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परमात्मा द्विधा सूत्रे सकलो निकलः स्मृतः । सकलो भण्यते सद्भिः केवलो जिनसत्तमः ॥३५६॥
सूत्र में परमात्मा सकल और निकल के भेद से दो प्रकार के माने गये हैं । सज्जनों ने जिन श्रेष्ठ केवली को सकल परमात्मा कहा है।
निष्कलोमुक्तिकान्तेशश्चिदानन्दैकलक्षणः ।
अनात सुखपत तः कर्माष्टक विवर्जितः ॥३५७॥ मुक्ति रूपी कान्ता के स्वामी चिदानन्दैकलक्षण, अनन्त सुख से सन्तृप्त और पाठ कर्मों से रहित निकल परमात्मा हैं।
_ जीव: वर्णमेकं रसं गन्धं स्पर्शयुग्मं च गाहते।
पुद्गलाणुः परः प्रोक्तो गलनपूरणात्मकः ॥३५८॥
दूसरा द्रव्य पुद्गल है । यह एक वर्ण, रस, गन्ध और स्पर्श युगल को व्याप्त करता है तथा उसे पूरण-गलन स्वभावी कहा गया है।
द्वयणुकादि विभेदेन स्निग्घरुक्षत्वसंश्रयात् ।
बन्धोऽन्योन्यं भवेत्तेषां वृद्धिरुपादनेकधा ॥३५६॥ . स्निग्ध और रूक्षत्व गुण के आश्रय से द्वयणुकादि के भेद से पुद्गलों का पारस्परिक बन्ध होता है । यह वृद्धि की अपेक्षा अनेक प्रकार का होता है। १ अयं पाठः क-पुस्तके नास्ति ।