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निर्ग्रन्थ यति जिस प्रकार वन्दनीय हैं, उसी प्रकार द्विजतापस भी वन्दनीय हैं । जहाँ पर इस प्रकार बुद्धि होती है, इस प्रकार मिश्र गुणस्थान वाला होता है ।
गोदुग्धे चार्कदुग्धे वा समताविलबुद्धयः ।
हेयोपादेयतत्वेषु यथते विकलाशयाः ॥३०॥ गोदुग्ध तथा अर्कदुग्ध में समता से मलिन बुद्धि वालों की तरह ये हेयोपादेय तत्त्वों के प्रति विकल आशय वाले होते हैं ।
जैनभावा' वदन्त्येवं ममताः कुलदेवताः।
चंडिकाराममाताद्या महालक्ष्मीमहालयाः ॥३१०॥ जैन भाव वाले चण्डी, उद्यान, माता, महालक्ष्मी, महालय आदि के विषय में कहते हैं कि ये मेरे कुल देवता हैं ।
अर्चन्ति परया भक्त्या प्रनत्यन्ति तदग्रतः ।
ऐहिकाशामहामोहद्व्याकुलीकृतचेतसः ॥३११॥
इस लोक की आशा रूपी महामोह से व्याकुल चित्त वाले वे उत्कृष्ट भक्ति से अर्चना करते हैं और उसके आगे नाचते हैं।
मोहातः करते श्राद्ध पितणां तप्तिहेतवे।
प्रजानन् जीव सद्भावगतिस्थित्यादिवर्तनम् ॥३१२॥ जीव के सद्भाव, गति, स्थिति आदि प्रवृत्ति को न जानते हुए पितरों की तृप्ति के लिए मोह से पीड़ित हो श्राद्ध करता है। १ जनभावो वदत्येवं । २ महामोहव्या. ख. ।