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भयतीत होकर शिष्य ने उस व्यन्तर की शान्ति के लिए आठ अंगुल विस्तृत चौकोर काष्ठ को 'यह वही है, ऐसा संकल्प करके पूजन की।
श्वेताम्बरः परिस्थाप्य समचितो यथाविधि ।
ततस्तेन परित्यक्त चेष्टितं विकियात्मकम् ॥२०७॥
श्वेत वस्त्र वालों ने स्थापना कर विधिपूर्वक पूजा की। तब उसने विक्रियात्मक चेष्टाओं को त्याग दिया।
समभूत कुलदेवोऽसौ पर्युपासनसंज्ञकः ।
अद्यापि जलगन्धाद्य : प्रपूज्यतेऽतिभक्तितः ॥२०८।। वह पर्युपासन नाम वाला कुलदेव हुआ । आज भी जल, गन्धादि के द्वारा अतिभक्ति पूर्वक पूजा जाता है ।
अन्तरे श्वेतसद्वस्त्रं धृत्वा तस्यार्चनं कृतम्।
तस्मादभूदिदं लोके श्वेताम्बरमताभिधम् ॥२०॥ बीच में अच्छे श्वेत वस्त्र धारण कर उसकी पूजा की । अतः यह लोक में श्वेताम्बर मत नाम वाला हुआ ।
समुत्पन्नेऽपि कैवल्ये भुनक्ति केवली जिनः।
नारीणां तद्भवे मोक्षः साधूनां ग्रन्थसंयुजाम् ॥२१०॥ केवलज्ञान के उत्पन्न हो जाने पर भी केवली जिन भोजन करते हैं । नारियों का उसो भव में मोक्ष हो जाता है । सग्रन्थ साधु होता है।
ईशं शास्त्रसंदोहं विपरीतं जिनोक्तितः। संविधाय वदत्येष गुरुद्रोही निरंकुशः ॥२१॥