________________
वृषभस्योपदेशेन गंगातोयावगाहनात् । जातस्त्यक्त कपालोडिप कपालीत्युच्यते जनः ।।१२६॥ .
वृषभ के उपदेश से गंगा के जल में स्नान करने से यद्यपि उसने कपाल छोड़ दिया, फिर भी लोग उसे कपाली कहते हैं।
यदि यः स्वकृतं पापं निर्नाशयितुमक्षमः। सोऽन्येषां कल्मषापाये स्वामी स्यादिति कौतुकम् ॥१३०॥
यदि वह अपने किए हुए पापों का विनाश करने में समर्थ नहीं है तो वह दूसरों का पाप विनाश करने में समर्थ है, यह बड़े कौतुक की बात हैं ।
ईपुराणसंदोहं श्रुत्वा युक्तिविजितम् । विभ्रमन्ति' जना स्वैरं संसारगहने वने ॥१३१॥
युक्ति से रहित इस प्रकार के पुराणों के समूह को सुनकर लोग अपनी इच्छा से संसार रूपी गहन बन में घूमते हैं ।
महास्कन्धस्य लोकस्य कर्ता हर्ता च रक्षकः । न कोडिप विद्यते तस्माद्विपरीतमिदं वचः ॥१३२॥
अतः महा स्कन्ध लोक का कर्ता, हर्ता और रक्षक नहीं हैं । अतः यह (उपर्युक्त) कथन विपरीत हैं ।
इत्येतद्विपरीतात्ममिथ्यात्वं कथितं मया ।
अतश्च क्षणिक कान्तं मिथ्यात्वं तन्निगद्यते ॥१३३॥ १ यदि स्वयं कृत ख.। २ बंभ्रमन्ति ख.। ३ यथा. ख.।