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तस्मान्मत्स्यादि जीवानां चैतन्य संयुजां जनैः ।
प्राणाभिधात'नं तेषां श्राद्धादौ क्रियते कथम् ॥५७॥ यदि ऐसा है तो चैतन्य से युक्त मत्स्यादि प्राणियों का घात श्राद्ध के आदि में क्यों किया जाता है।
सर्वेष्वड्ग प्रदेशेष प्रत्येकं देह धारिणाम ।
ब्रह माधा देवताः सन्ति वेदार्थोऽयं सनातनः ॥५॥
प्रत्येक देह धारी के समस्त अङ्ग प्रदेशों में ब्रह्मादि देवता हैं, यह सनातन वेदार्थ है। उक्त च पुराणे पुराण में भी कहा गया है
नाभिस्थाने वसेद ब्रहमा विष्णुः कण्ठे समाश्रितः। तालुमध्यस्थितो रुद्रो ललाटे च महेश्वरः ॥१॥ नासाग्र तु शिवं विद्यात्तस्यांते च परापरं ।
परात्परतरं नास्ति शास्त्र स्यायं विनिश्चयः ॥२॥ नाभि स्थान में ब्रह्मा रहता है, कण्ठ में विष्णु का आश्रय है, तालु के मध्य में रुद्रा स्थित है और ललाट में महेश्वर स्थित है। नासिका के अग्रभाग में शिव जानने चाहिए। उसके अन्त में परापर है । पर से परतर कोई नहीं है। यह शास्त्र का निश्चय है।
यज्ञादावामिषं तेषां भुक्त छागादि देहिनाम् ।
यदि स्वर्गीय जायेत नरकं केन गम्यते ॥५६॥ यज्ञ के आदि में बकरे आदि प्राणियों का मांस खाने से यदि स्वर्ग होता है तो नरक में कौन जायेगा ? १ दिधर, ख. २ अस्याग्रे 'श्लोको' ख-पाठः ।