________________
अथके प्रवदन्त्येवं भूतोयाग्निन गादिषु ।
भूतग्रामेषु सवेषु विष्णुवसति सर्वगः ॥५४॥ कुछ लोग इस प्रकार कहते हैं कि पृथ्वी, जल, अग्नि, पर्वत तथा समस्त प्राणियों में सर्वव्यायापी विष्णु रहता है ।
उक्त च पुराणे-पुराण में कहा है
जले विष्णुः स्थले विष्णुः विष्णुः पर्वतमस्तके ।
ज्वालमालाकुले विष्णुः सर्व विष्णुमयं जगत् ॥ जल में विष्णु है, थल में विष्णु है, पर्वत के मस्तक पर विष्णु है, ज्वालाओं के समूह से व्याप्त (अग्नि) में विष्णु है । समस्त जगत् विष्णुमय है।
वसेत्सर्वाङ्गिदेहेषु विष्णुः सर्वगतो यदि ।
वृक्षाविघातनात्सोऽपि हन्यमानो न कि भवेत् ॥५५॥ समस्त प्राणियों की देह में यदि विष्णु रहता है तो वृक्षादि का घात करने पर उसे विष्णु का घात क्यों नहीं माना जायेगा।
मत्स्य कूर्मवराहाधा विष्णोर्गर्भाश्रया दश ।
मत्स्यादिशैल विस्वानां पूजनं कियते ततः ॥५६।। मत्स्य, कूर्म, वराह आदि दश विष्णु के गर्भ का आश्रय करते हैं, अतः मत्स्यादि तथा शैलबिम्बों की पूजन की जाती है।