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कर्म के उदय से जीव का जो औदयिक भाव, स्वभाव या परिणाम होता है, उसे पारिणामिक भाव कहते हैं।
द्वौ नवाष्टाद शैकाविंशतिश्च त्रयस्तथा ।
इत्यौप शमिकादीनां भावनां भेद संग्रहः ॥१०॥
औपशमिक भाव के दो क्षायिक के नौ, क्षायोपशमिक के अठारह, औदयिक के इक्कीस तथा पारिणामिक के तीन भेद होते हैं । __ स्यादुपशम सम्यवत्वं चारित्रं च तथाविधन्' ।
इत्यौपशमिको भावो भेदद्वय मुपागतः ॥११॥
प्रौपशमिक भाव के दो भेद हैं (१) औपशमिक सम्यक्त्व और (२) औपशमिक चारित्र ।
सम्यक्त्वं दर्शनं ज्ञानं वृत्तं दानाविपंचकम् ।
स्वस्वकर्मक्षयोद्भूतं नवैते क्षायिके भिदः ॥१२॥
अपने-अपने कर्म के क्षय से उत्पन्न सम्यक्त्व, दर्शन, ज्ञान, चारित्र तथा क्षायिक दान, लाभ, भोग, उपभोग और वीर्य ये नौ भेद क्षायिक भाव के हैं । द्विकलं
दर्शनत्रयमाधं च ज्ञानचतुष्कमादिमम् । क्षयोपशम सम्यक्त्वं व्यज्ञानं दानपंचकम् ॥१३॥ रागोपयुक्तश्चारित्रं संयमा संयमस्त्विति ।
अष्टादश प्रभेदाः स्युः क्षायोपशमिके अञ्जसा ॥१४॥ १ औशमिकं । २ सरागसंयमं ।