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श्रीमद्वामदेवपण्डित विरचितो
भावसंग्रहः
श्रीमदीरं जिनाधीशं मुक्तीशं त्रिदशाचितिम् ।
नत्वा भव्यप्रबोधाय वक्ष्ये डबहं भावसंग्रहम् ॥१॥
जो जिनों के अधीश हैं, मुक्ति के स्वामी हैं तथा जिनकी देवगण अर्चना करते हैं, उन शोभा से युक्त वीर (भगवान्) को नमस्कार करके भव्यजनों को जाग्रत करने के लिए (मैं) भाव संग्रह (ग्रन्थ) को कहता हूँ।
भावा जीव परीणामा जीवा भेदद्वयाश्रिताः।
मुक्ताः संसारिणस्तन्न मुक्ताः सिद्धाः निरत्ययाः ॥२॥ _____ जीव के परिणामों को भाव कहते हैं । जीव के दो भेद हैं-मुक्त और संसारी । उनमें से मुक्त जीव सिद्ध और अविनाशी हैं ।
कमीष्टक विनिमुक्ती गुणाष्टक विराजिताः।
लोकाग्रवासिनो नित्या ध्रौव्योत्पत्ति व्ययान्विताः ॥३॥ वे (सिद्ध जीव) आठ कर्मों से रहित, आठ गुणों से सुशोभित, लोक के अग्र भाग पर निवास करने वाले, नित्य तथा उत्पाद, व्यय एवं ध्रौव्य से युक्त हैं।
ये च संसारिणो जीवाश्चतुर्गतिषु संततम् । शुभाशुभपरीणा मैभ्रमिन्ति कमंपाकतः ॥४॥