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निरालम्ब ध्यान योग से निजात्मा का चिन्तन होता है, जिससे इस संसार में बन्ध का विच्छेद करके मुक्तिगमन करता
ये वदन्ति गृहस्थानामसि ध्यानं निराश्रयम् ।
जैनागमं न जानन्ति दुधियस्ते स्ववंचकाः॥६०५॥
जो लोग कहते हैं कि गृहस्थों के निरालम्बन ध्यान होते हैं, दुर्बुद्धि अपने को ठगने वाले वे जिनागम को नहीं जानते हैं।
निरालम्बं तु यदध्यानमप्रमत्त यतीशिनाम् ।
बहिर्व्यापारमुक्तानां निर्ग्रन्थजिनलिगिनाम् ॥६०६॥ बहिर्व्यापार से मुक्त, निर्ग्रन्थ जिनलिङ्गी अपमत्त मुनिराजों के निरालम्ब ध्यान होता है।
गृहव्यापारयुक्तस्य मुख्यत्वेनेहे दुर्घटम ।
निर्विकल्प' चिदानन्द निजात्मचिन्तन परम् ॥६०७॥
जो गृहव्यापार से युक्त है, उसके मुख्यता से निर्विकल्प, चिदानन्द, निजात्मा का चिन्तन कठिन है ।
गृहव्यापारयुक्त न शुद्धात्मा चिन्त्यते यदा।
प्रसफरन्ति तदा सर्वे व्यापारा नित्यभाविताः ॥६०८॥ जो गृहव्यापार से युक्त है, उसके द्वारा जब शुद्धात्मा का चिन्तन किया जाता है तो नित्य रूप से भावित समस्त व्यापार प्रस्फुरित होते हैं। १ ल्पं ख।