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हे उत्तम बुद्धि वाले ! जिस प्रकार पत्थर की नौका अपने को और दूसरे को शीघ्र ही डुबा देती हैं, उसी प्रकार अपात्र संसार रूपी समुद्र में डुबा देते हैं, ऐसा जानो ।
पात्रे दानं प्रकर्तव्यं ज्ञात्वैवं शुद्धदृष्टिभिः ।
यस्मात्सम्पद्ये सौख्यं दुर्लभं त्रिदशेशिनाम् ॥५६७॥ इस प्रकार जानकर शुद्ध दृष्टि वालों को सुपात्रों को दान देना चाहिए। जिससे इन्द्रों को जो दुर्लभ है, ऐसे सुख की प्राप्ति होती हैं।
दानम। क्रियते गन्धपुष्पाद्य गुरुपादाब्जपूजनम् ।
पादसंवाहनाद्य च गुरुपास्तिर्भवत्यसौ ॥५६८॥ गन्ध, पुष्प आदि से गुरु के चरण कमलों की पूजा करना, चरण दबाना आदि गुरुपास्ति है ।
गुरुपास्ति । चतुर्णामनुयोगानां जिनोक्तानां यथार्थतः ।
अध्यापनमधीतिर्वा स्वाध्यायः कथ्यते हि सः॥५६६।। जिनोक्त चार अनुयोगों का यथार्थ रूप से अध्ययन स्वाध्याय कहलाता है।
स्वाध्यायः । प्राणिनां रक्षणं त्रेधा तथाक्षप्रसराहतिः । एकोद्देशमिति प्राहुः संयमं गृहमेधिनाम् ॥६००।