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________________ तीन जगत् में तीन काल में सम्यक्त्व के समान श्रेयस्कर जीवों के । लिये अन्य कुछ नहीं है एवं मिथ्यात्व के समान अश्रेयस्कर अन्य कुछ। नहीं है। २) सासादन : आदिम सम्मत्तद्धा समयादो छायलित्ति वा सेसे । अण अण्णवरुदयावो णासिय मम्मोत्ति सासणक्खो सो ||१९|| सासादन अर्थात असादन सहित । जिसने उपशम सम्यक्त्व को प्राप्त कर सम्यक्त्व के काल में जघन्य से एक समय और उत्कृष्ट मे आवली शेष रहने पर अनंतानुबंधी संबंधी क्रोधादि एक कषाय का उदय होनेपर जिसने सम्यक्त्व रुपी रत्न पर्वत के शिखर से गिरकर मिथ्यात्व रुप भूमि के सन्मुख हुआ है परंतु मिथ्यात्व रुप भूमि में अभी तक पहुंचा नहीं, उस पतनभिमुख आत्मीक परिणाम विशेष को सासादन गुणस्थान ।। कहते है। ३) मिश्र गुणस्थान : सम्मामिच्छुदएण य जत्तंतर सव्वधादि कज्जेण । ण य सम्भं मिन्छ पि य सम्मिस्सो होदि परिणामो ॥२१॥ (गो. सार) जात्यंतर सर्वघाति के कार्य रूप सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृति के उदय । से जीत्र के एक साथ सम्यक्त्व और मिथ्यात्व रुप मिश्र परिणाम होता है उस समय में शुद्ध न सम्यक्त्व रहता है न मिथ्यात्व रहता है जिस प्रकार मिले हुए दही-गुड में खट्टा और मीठा दोनों युगतप मिले हुए रहते हैं उनको अलग - अलग कतना शवय नहीं है उसी प्रकार मिश्र अवस्था में सम्यम्मिथ्यात्व भाव रहते है। जिस प्रकार घोडी गधा से उत्पन्न हुआ संतान न घोडा होता है और न गवा होता है, खच्चर होता है उसी प्रकार मिश्र परिणाम होते है। " गंगा गय गंगादास, अममा गय जमनादास" नीति के अनुसार सम्यक् देव गुरु शास्त्र को। भी मानता है और मिथ्या देव गुरु शास्त्र को भी मानता है।
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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