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है। तो मिथ्यात्व और अविरति बंध के कारण नहीं है, अवश्य है, किंतु संक्षेप से कषाय में मिथ्यात्वादि को अन्तर्भूत कर दिया है। यहाँ पर कषाय प्रत्यय अंत दीपक है, इसलिये उसके पहले पहले के सभी कारण उससे ग्रहण किये गये है। सूत्रः
सम्वतित्वाणुभागा मिच्छतस्स उक्कस्साणु भागुतोरणा । अणंताणबंधोणमण्णदरा उक्कस्साणु भागुदीरणा
सुल्ला अणंत गुण होषा ।। ।
ज. प. पु. ११ पे. १२३-१२४ सब से मिथ्यात्व को उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा तीव्र अनुभाग वाली है । अर्थाथ् सब से तीव्र शक्ति से संयुक्त है। उससे अनंतानुबंधीयों को अन्यतर (कोई एक) उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा परस्पर समान होकर मिथ्यात्व को उत्कृष्ट अनु पाग उदीरणा से अनंत गुणी हीन है ।
शंका :- मिथ्यात्व को उत्कृष्ट अनुभाग उदोरणा सत्र में तीन । क्यों है ।
समाधान :- " सव्व दब बिसय सदहण गुण पडि बंधितादो"
अर्थ ,- सर्व द्रव्य विषय श्रद्धान गुण का प्रतिबंधन मिथ्यात्व कर्म करता है।
ज. प. पु. ११ पे. १२३ मिच्छतपच्चयो खलु बन्धो जवसाम यस्य बोधव्यो । उवसंते सासणे तेण परं होदि भय गिजो ।। (धवल)
मिथ्यात्व का उपशांत अवस्था में और सासादन गुणस्थान में मिथ्यात्व निमित्तक बंध नहीं होता है अन्य स्थान भी भजनीय है । अर्थात मिथ्यात्व को प्राप्त हुए जीव को मिथ्यात्व' निमित्तक बंध होता है। अन्य गुणस्थान प्राप्त जीव को बंध नहीं होला । एक विचारणीय विषय है कि ४० कोडा कोडी सागर स्थिति वाला चारित्र मोहनीय ( अनंतानुबंधी आदि ) ७० कोडा कोडी सागर स्थिति प्रमाण दर्शण