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________________ ४७ इसी प्रकार नियति को ही यदि कार्य के लिये कारण मानेंगे तब काल, स्वभाव, पूर्वकृत, पुरुषार्थ रूप चार कारणों के लोप का प्रसंग प्राप्त होता है परंतु विकल अर्थात पडून कारण से कार्य नहीं हो सकता है। द्रव्य में परिणमन के लिये उदासीन रुप काल का अभाव होने पर प्रव्य में परिणमन नहीं होगा, स्वमाव के अभाव से द्रव्य का ही लोप होगा । पूर्वकृत के अभाव से एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक एवं मिथ्यात्व से चौदह गुणस्थान तक जीव की अवस्था विशेष का अभाव होने से संसार का अभाव हो जायेगा, जिससे प्रत्येक जीव शुद्ध-बुद्ध, नित्य निरंजन स्वरुप जायेंगे जो कि प्रत्यक्ष विमद्ध है। कर्म नहीं है तो कर्म नष्ट करने के लिये पुरुषार्थ की क्या आवश्यकता है ? संसार के अभाव से प्रतिपक्ष भूत मोक्ष का भी अभाव हो जायेगा। संसार-मुक्त जीवों का अभाव होने से प्रतिपक्ष भूत अजीव द्रव्य का अभाव हो जायेगा, तब सर्व शून्यता का प्रसंग आयेगा जो कि अनुपलब्ध है। यदि केवल नियति को ही कार्य में कारण मानेंगे तो पुरुषार्थ के अभाव होने से लौकिक व अलौकिक कार्य के लिये जीव बुद्धिपूर्वक अथवा अबुद्धिपूर्वक क्रिया करता है उसका लोप होगा, पुरुषार्थ के अभाव से मोक्ष का भी अभाव हो जायेगा। परंतु अनंत केवली हुए वे सभी पुरुषार्थ पूर्वक, बुद्धिपूर्वक, गृहस्थ जीवन का त्याग कर, शरीर स्थित पोषाक निकालकर, केशलोंच कर, निग्रन्थ रुप धारणकर, कठोर अन्तरंग-बहिरंग तपश्चरण कर मोक्षपदवी प्राप्त किये है। धृव सिद्धि तिस्थयरो चउणाण जुदो करेइ तवयरणं । णाऊण धुवं कज्जा तवयरणं णाणजुत्तो वि ।।६०॥ (अस्टपाहुड) उदय लोय ह्यियर अणंत सुहसंति वातारो । विस्ससंति पवातारो जो सो हवई धम्मो ।। ५ ॥ (३) सुमण पुष्फ संचयण - जिण धम्मो - जत्थ अयंत जत्थ सियावाय जत्य रयणत्तय होई । जत्थ जीवदया जत्थ उह्य गया तत्थ जिण धम्मो होई ॥६॥
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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