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________________ ४८ तद्भव मोक्षगामी, चरमशरीरी, निश्चितरुप से तद्भव में मोक्ष जानेवाले, जन्म से ही क्षायिक सम्यग्दृष्टि, मति-श्रुत-अवविज्ञान के घारक होते है और अन्तरंग-बहिरंग कारण मिलने पर सम्पूर्ण परिग्रह का त्याग कर "नमः सिद्धेभ्यः” बोलकर केशलोंच कर दीक्षा लेते है तब अनेक ऋद्धि-सिद्धि सहित मनःपर्यय ज्ञान प्रगट होने पर चार ज्ञान धारी होने के कारण उन्हे स्पष्ट अवगत है कि मैं निश्चित मोक्ष जाऊंगा तो भी तिर्थंकर भगवान् कठोर-कठोर अन्तरंग-बहिरंग तपश्चरण करते है, मासोपवासी होकर पर्वत के शिखर पर ग्रीष्म ऋतु में, जिस समय पाँव के मीचे पृथ्वी जलती है और सूर्य ऊपर अत्यन्त संताप देला है, चारों ओर ऊष्ण वायु शरीर को शोषण करती है, तब भी कम शत्रु को नष्ट करने के लिये अन्तरंग बहिरंग तपश्चरण करते है, अन्यथा कर्म नष्ट नहीं हो सकता है, कर्म नष्ट हुए चिना शाश्वतिक आत्मोत्थ अतिन्द्रिय ज्ञानानंद सुख की प्राप्ति नहीं हो सकती है । तोश्वरा जगज्जेष्ठा, यद्यपि मोक्षगामिना । तथापि पालितं तैश्च चारित्रं मुक्ति हेतवे ।। जगत में ज्येष्ठ तीर्थ के ईश्वर जो निश्चित मोक्षगामी है तो भी । वे मुक्ति के हेतु चारित्र को पालन करते है। जवि ण वि कुवि छेदं ण मुच्चवे तेण बंधणवसो सं । कालेण दु बर्गेण विण सो गरो पावदि विमोक्खं ॥२८९।। (मोक्ष अधिकार समयसार) जह बंधे छेलण य बंधण बद्धो दु पाववि विमोक्खं । तह बंधे छेतूण य जीवो संपावि विमोक्खं ॥२९२६॥ (मोक्ष अधिकार समयसार) Ass. PET'son, who lhas been in shuckles for a long timu may be aware of tho nature of hia bundlage, intI'IIN: Ur fueble, and also its duration still 80) long y 2: de not make any cffort to break them, he clore 1860. got him welf free from the chains, and muy luvu 1 rxmain sn. for a long time without obtaining free,
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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