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प्रकार मिथ्यावादियों के ३६३ भेद होते है ।
कोई एकांत से काल, ईश्वर, आत्मा नियति और स्वभाव स्वतंत्र स्वतंत्र रूप से कर्ता मानते है ।
कुछ मिथ्यावादियों का स्वरूप :
एकांतकालवादी:- काल ही सबको उत्पन्न करता है, काल ही सबका नाश करता है, सोते हुए प्राणियों को काल ही जगाता है सो ऐसे काल को ठगने में कौन समर्थ हो सकता है ? इस प्रकार काल से ही सब कार्य मानना, कालवाद कहलाता है ।
एकांत निसियाबी:- ओ जिस समय जिसस जैसा जिसको नियम से होना है वह उस समय उससे वैसे उसके ही होता है ऐसा नियम में सभी वस्तु को मानना नियतिवाद कहलाता है ।
किसी भी कार्य के लिये पंच कारणों की आवश्यकता:
इसी प्रकार कोई मिथ्यावादी एक एक कारण से कार्य उत्पति को मानते है परंतु प्रत्यक कार्य सम्यक् अन्तरग-बहिरंग भावों के सद्भाव से एवं विरोधी कारणों के अभाव से होता है । यथा:
कालो सहाय णियइ पुवकयं पुरिस कारणेगंता । मिच्छतं ते वेव उ समासओ होंति सम्मतं ।। ५३ ।।
( सन्मतीसूत्र ) प्रत्येक कार्य के लिये १) काल २) स्वभाव ३ नियति ४)पूर्वकृत ५) पुरुषार्थ । इन पांच कारणों का सम्यक् समन्वय चाहिये और प्रत्येक कार्य के लिये पांचो को मानना सम्यक्त्व है । एक एक को कार्योत्पत्ति में कारण मानना मिथ्यात्व है। कालरूपी कारण केवल वाह्य उदासीन कारण है, उपादान अथवा प्रेरक कारण नहीं है ।
यदि काल को ही सम्पूर्ण कार्यों का कर्ता मानेंगे तब काल को ही कर्म बंध होना चाहिये, काल को ही सुख दुःख होना चाहिये, काल को ही मोक्ष पद की प्राप्ति होनी चाहिये ? परंतु यह आगम, प्रत्यक्ष अनुमान विरुद्ध है क्योंकि इस प्रकार उपलब्ध नहीं है ।