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________________ ४३ प्रवचनः आप्तः, प्रकृष्टस्य बत्रनं प्रवचनं – परमागमः, प्रकृष्ट मुच्यतेप्रमाणेन अभिधीयते इति प्रवचनं पदार्थः, इति निरुक्त्या प्रवचन शब्देन तत्प्रामाभिधान ! पुन: पिपादृष्टिः असावं मिथ्यारुपं प्रवचनं आनागम पदार्थ उपदिष्टं -. आप्ताभासोः प्रकथितं अथवा अनुपदिष्टंअकथितमपि श्रद्दधाति । भिभ्यादष्टि जोय उपदिष्ट' अर्थात् अर्हन्त आदि के द्वारा कहे गये, 'प्रवचन' अर्थात् आप्त आगम और पदार्थ ये तीन, इनका श्रद्धान नहीं करता है। प्रवचन अर्थात् जिसका वचन प्रकृष्ट है एसा आप्त, प्रकृष्ट का बचन प्रवचन अर्थात् परमागम, प्रकृष्ट रूप से जो कहा जाता है व प्रवचन अर्थात पदार्थ । इन निरुक्तियों से प्रवचन शब्द से आप्त, आगम और पदार्थ तीनों कहे जाते है । तया वह मिथ्यादृष्टि असद्भाब अर्थात् मिथ्यारूप प्रवचन यानी आप्त आगम पदार्थ का 'उपदिष्ट' अर्थात आप्राभासों के द्वारा कथित अथवा अकथित का भी श्रद्धान करता है । पवमक्खरं च एक्कं पि जो ण रोवेदि सुत णिद्दिष्ठठं । सेसं रोचतो वि हु मिच्छादिही मणेयवा ||३९।। (भगवती आराधना) विजयोदया टीका- पदमक्खरं इति । पद शब्देन पद शब्दस्य सहकारी पदस्यार्थ उच्यते । अक्खरं च इति स्वल्प' शब्दोपलक्षणं स्वल्पमप्यर्थ शब्दश्रत वा । जो यः। ण रोचेदि न रोचते । सूत्त णिदिळं पूर्वोक्त प्रमाण निर्दिष्टम । सेसं इतरश्रुतार्थ श्रुतांशं । रोचतोऽपि । (२) मंगलाचरणं ( सुमण पुप्फ संचयण ) प्राकृत मंगलं मयवदो आदा मंगलं अणयंत धम्मो । मंगलं रणतयं मंगलं वत्थु सहायो ।। १ ।। मंगलं विसुद्ध आवा मंगलं आतं परमेछी । मंगल साधयत्तयं मंगलं रयणनयं ॥ २ ।।
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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