________________ अजितशत्रू तावद् गर्जन्ति शास्त्राणि जम्बुका विपिने यथा / न गर्जन्ति महाशक्तिर्यावद् म्याद्वाद केशरी / / तब तक शास्त्ररूपि शृगाल गर्जन करता है, जब तक महशक्तिवान स्याद्वादसिंह गर्जन नहीं करता है / सत्याग्रह पक्षपाति नमे वीरे न द्वेष कपिलादिषु / युक्तिमद् वचनं यस्य तस्य कार्यपरिहः / / मेरे बीरप्रति पक्षपात नहीं कपिलादि प्रति द्वेष नहीं / किंतु जिनका बचन युक्तियुक्त है उन्हीं का अनुकरण करो। हिन्दी दोहा विषयसुख का लालची सुन अध्यातम वाद ! त्याग धर्म को त्यागकर करे साघु अपवाद / / समकित समकित रटन समकिस कवहुँन होय / वीतराग की भगति विन समकित कहते होय / / कायपात्र कर तप नहीं किना आगम पढकर न मिटि कषाय / घन को जोडि दान नहीं दिना तो तु क्या किया इस आन / कहते है करते नहीं मुंह के बडे लवार कालां मुंह होयेगा कर्म के दरबार // क्या क्या देखो वीतरागमे तू क्या जाने वीरा रे / वीतराग की बाणी द्वार दूर करो भवपीरा रे / /