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________________ १२ रुप से उस अभव्य में जो गुण है वे सर्वथा कभी लोप हो सकते हैं? कभी नहीं । यदि लोप होगा तो जीव ही अजीव बन जायेगा ऐसा कभी संभव नहीं है । इसलिये वस्तु का स्वरुप प्रतिपादन करने के लिये एवं धर्म प्रचार-प्रसार के लिये, आत्म उद्धार के लिये दोनों नयों की परम आवश्यकता है । यथा - — निश्चय व्यवहार नय जई जिणमयं पत्रज्ञ्जइ ता वा ववहार णिच्छा भुयह । एक्केण विणा हिज्जइ तिथं अणेण उण तच्चं ॥ — यदि जिनधर्म का प्रचार-प्रसार प्रवर्तन करना है एवं आत्म उद्धार करना हैं तो केवल एकांत व्यवहार का पक्षपाती मत बनो इसी प्रकार केवल एकांत निश्चय का भी पक्षपाती मत बनो । यदि व्यवहार को नहीं मानेंगे तब संसार से उत्तीर्ण होने रुप जो व्यवहार तीर्थं ह उसका लोप हो जायेगा और जिसके कारण आत्मोपलब्धि रूप निश्चय धर्म की प्राप्ति नहीं हो सकती है । यदि निश्चय को नहीं मानेगें तो व्यवहार धर्म के माध्यम से जिस परम तत्व को प्राप्त करना है उस परम तत्व का लोप हो जायेगा फिर उस व्यवहार धर्म के द्वारा किस तत्व को प्राप्त करेंगे । समयसार के गुप्त रहस्य को उद्घाटित करनेवाले, कुंदकुंद साहित्य रुपी सागर में अवगाहन करनेवाले समयसार के आद्य टीकाकार आध्यात्मिक संत अमृतचन्द्र सूरि तत्त्वार्थं सार में कहते हैं: निश्चय - व्यवहाराभ्यां मोक्षमार्गों द्विधा स्थितः । तत्राद्यः साध्यरूपः स्याद् द्वितीयस्तस्य साधनम् ॥ मोक्षमार्ग दो प्रकार का है । (१) निश्चय मोक्षमार्ग ( २ ) व्यवहार मोक्षमार्ग | निश्चय मोक्षमार्ग साध्य रूप है जिसे प्राप्त करना है जो कार्य स्वरूप है। द्वितीय व्यवहार मोक्ष मार्ग साधन स्वरुप हूँ
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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