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मानने के कारण ये दोनों नय भिन्न भिन्न हैं। उदाहरण स्वरूप समयसार मे कुन्द कुन्द देव कहते है--
ववहारेणु बदिस्सइ गाणिस्स चरित्त सणं गाणं 1 णवि णाणं ण चरित्तं ण दसणं जाणगा सुद्धो 11७11
From the vyavahara point of view, conduct. belief and knowledge are attributed (as different characteristics) of the knower, the self. But from the real point of view there is no (differentiation of ) knowledge, conduct and belief, in Pure selt.
ध्यबहार नय की अपेक्षा ज्ञानी का चारित्र, दर्शन, ज्ञान है किंतु निश्चय नय की अपेक्षा ज्ञानी का ज्ञान दर्शन चारित्र नहीं है केबल एक ज्ञायक शुद्ध स्वभाव है ॥७॥
इस गाथा में दोनों नयों का विरुद्ध विषय प्रतिपादन है जैसे कि शानी का चारित्र आदि है किंतु निश्चय नय की अपेक्षा ज्ञानी का चारित्र आदि नहीं है तो निश्चय नय की अपेक्षा चारित्र आदि नष्ट हो गए क्या? यदि चारित्र आदि नष्ट हो जायेंग तो आत्म द्रव्य ही नष्ट हो जागेगा, परंतु ऐसा है नहीं । सद्भूत व्यवहार नय की अपेक्षा चारित्र आदि भेद है, तथा शुद्ध नय की अपेक्षा अभेद से एक ज्ञायक स्वभाष में अन्तर्भत किया गया है । व्यवहार अपेक्षा तीन भेद होकर परस्पर अलग अलग द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव में रहते है क्या? नहीं परंतु गुण-गुणी भेद से भेद है। इस प्रकार दोनों नयों का परस्पर विरोध और समन्वय हुआ। दुसरा उदा, -
" सव्वे सुद्धा हु सुद्ध णया" शुद्ध द्रव्याधिक नय की अपेक्षा से प्रत्येक जीव शुद्ध, बुद्ध, नित्य निरंजन, अनंत दर्शन ज्ञान स्वरुप हैं । परंतु पर्यायाथिक नय की अपेक्षा अभव्य लध्य पर्याप्तक जीव अनंत मोही, अज्ञानी. दुःखी हैं । द्रव्य दृष्टिसे वह भी सिद्ध के समान होते हुए भी पर्याय रुप से वह कभी सिद्ध हो सकता है? कदापि नहीं । इससे सिद्ध होता हैं निरपेक्ष द्रव्याथिक नय भी मिथ्या है परंतु शक्ति