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________________ बस्तु अनेकांत स्वरुप है । अनेकांत को जाननेपर ही वस्तु के स्वरुप को जान सकते हैं। जब वस्तू के स्वरुप को जानेंगे तभी सम्यगृष्टि हो सकते हैं । जब सम्यगृष्टि होंगे तभी मोक्षमार्गी होंगे। जं णयदि विहीणा तेसि ण हु वत्थुरुव उवल द्धिः । वत्थु सहाब विहूणा सम्माइट्ठी कहं हुति ।।१०।। नय चक्र । नय दृष्टि से विहीन व्यक्ति वस्तु स्वरूप को प्राप्त नहीं कर सकता है वस्तु स्वभाव रहित जीव सम्यगृप्टी नहीं हो सकता है ।।१०।। एअंतो एअणओ होइ अणेयंतमस्स सम्महो । तं खल णाणवियप्पं सम्म मिच्छ च णायव्वं ॥२|| नयचक्र एक नय एकांत स्वरूप है सम्पूर्ण नयों का सम्यक् समन्वय अनेकांत है । नय और अनेकांत दोनों ज्ञान के विकल्प हैं। तो भी एकांत नय मिथ्या है और अनेकांत सम्यक् है । वह भले द्रव्यार्थिवा या निश्चय नय हो अथवा पर्यायाथिक या व्यवहार नय हो ये दोनों निरपेक्ष होने से दोनों मिथ्या एवं अवस्तु स्वरूप हैं । सिद्धसेन दिवाकर ने सन्मति सूत्र में कहे हैं -- दबट्ठिय वत्तव्वं अवत्थु अवत्थु णियमेण पज्जब णग्स्स । तह पज्जव वत्थु अवत्युमेव दवट्ठिय णयस्स ।।१०॥ द्रव्यार्थिक नय का सामान्य कथन पर्यायाथिक नय के लिये नियम से अवास्तविक है। इसी प्रकार पर्यायाथिक नय का विषय द्रव्यार्थिक नय के लिये अवास्तविक है। क्योंकि विवक्ष भेद से दोनों नयों के विषय भिन्न भिन्न हैं। दोनों ही नय एक ही वस्तु के विभिन्न स्वरुप को ग्रहण करते हैं। कथञ्चित्- दोनों नय परस्पर एक दूसरे के विषय को ग्रहण कर सकते हैं क्योंकि दोनों नय सापेक्ष हैं । द्रव्याथिक मय सामान्य हैं और पर्यायाथिक नय विशेष है 1 अतएव एक दूसरे के विषय को अवस्तु
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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