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जिसके द्वारा साध्य रूप निश्चय मोक्ष मार्ग की प्राप्ति होती है समर्थ कारण से कार्य होता है अर्थात् साधन से साध्य सिद्धि होती है इस न्यायानुसार व्यवहार मोक्ष मार्ग के द्वारा निश्चय मोक्ष मार्ग की उपलब्धि होती हैं । व्यवहार मोक्ष मार्ग बिना निश्चय मोक्ष मार्ग त्रिकाल में अनुपलब्ध ही रहेगा ।
पंडित शिरोमणि चतुर अनुयोग पारंगत निश्चय-व्यवहारज्ञ आर्ष परम्परा संरक्षक संस्कृत के महान धर्मामृतादि अनेक मौलिक कृति के रचयिता आचार्यकल्प आशाधरजीने अनगार धर्मामृतम लिखे हैं :
व्यवहार पराचीनः निश्चयं यः चिकीर्षति । बीजादि बिना मूढः सः शस्यानि सिसृक्षति ||
व्यवहार से जो विमुख होकर जो निश्चय को चाहते हैं वे मूढ हैं जैसे कि एक मूड बीज के बिना वृक्ष को चाहता है अर्थात जिस प्रकार बीज के बिना वृक्ष नहीं हो सकता है उसी प्रकार व्यवहार के बिना निश्चय की प्राप्ति नहीं हो सकती है । इसलिये अमृतचन्द्र सूरि पुरुषार्थं सिद्धि में कहते हैं -
व्यवहार निश्चय यः प्रबुध्य तत्त्वेन भवति मध्यस्थः । प्राप्नोति देशनाया: स एव फलम विकलं शिष्यः || २ ||
पुरुषार्थ सिद्धि जो व्यवहार और निश्चय में ज्ञानी होकर अर्थात दोनों नयों कों अच्छी तरह समझकर कोई भी नयों का पक्षपाती नहीं होकर मध्यस्थ होते हैं अर्थात यथायोग्य दोनों को मानते हैं वही योग्य शिष्य हैं वही उपदेश प्राप्त करने के लिये योग्य हैं । अन्य हठग्राही, पक्षपाती जन उपदेश के पात्र नहीं हैं ||
वेवसेन आचार्य तयचक्र को समाप्त करते हुए लिखते है
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जह इच्छत् उत्तरिदुं अज्झाण महोर्वाह सुलीलाए ।
तो णादुं कुणह मई णय चक्के दुणय तिमिर मत्तण्डे ||२६||
नयचक्र