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अन्तिम मंगलाचरण
ये वीर जिनेन्द्र तद्वाणीं वीरसारं वंदे | तोषित जिनधर्म वंदेऽहं बोधिसाभाय ॥
भाव-संग्रह
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अर्थ- अंत मे में जिनेन्द्र देव भगवान वर्द्धमान स्वामी की नमः स्कार करता हूँ, उनके मुख से प्रगट हुई द्वादशांग वाली को नमस्कार करता हूँ और विद्यमान आचार्य वर्य श्रीवीर सागरजी महाराज की वंदना करता हूँ एवं रत्नत्रय की प्राप्ति के लिये उनके द्वारा कहे हुए जिनमें की वंदना करता हूँ ।
जयतु तवा जिनधर्मः सूरिः श्री शांति सागरो जयतु । पच्चरणसेवया मां प्राप्ता स्वल्पा हि जिनभक्ति ||
अर्थ- यह जैनधर्म सदा जयवंत हो तथा जिनके चरणकमलों की सेवा करने से मुझे थोडी सी जिनभक्ति प्राप्त हुई है ऐसे भाद्रपद शुक्ल २ विक्रम संवत् २०१२ को ८४ वर्ष की आयु मे दिवंगत आचार्य वयं श्री शांति सागर जी महाराज सदा जयवंत रहें ।
समाप्तोऽयं ग्रंथ: