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________________ गुरुदेव को नमस्कार हो । इससे सिद्ध होता है कि देवसेनाचार्य नय विषयक मर्मज्ञ महाप्राज्ञ विद्वान थे उन्होंने सुनय चक्र के माध्यम से दुर्नय स्पो मोहान्धकार स्वरूप देत्य को नाश क्रिये थे अर्थात जैन धर्म का सम्यक् प्रचार प्रसार उन्नयन किये थे ।।४२३।। द्रव्य स्वभाव प्रकाशक दोहा में रचा हुआ था उसको माइल्ल धवल ने गाथाबद्ध किया || ४२४।। अनुकूल बायु के द्वारा प्रेरित हुआ जहाज तैरने में समर्थ होता है वैसे ही श्री देवसेन मुनि ने नयचक्र पुनः रचा। इससे सिद्ध होता है उस समय की परिस्थिति से प्रेरित होकर आचार्य श्रीने पुनः नयचक्र को रचा । अन्य प्रति में स्थित अन्य गाथा - दुसमीरणेण पोयं पेरियसंतं जहा तिरं नहूँ । सिरि देवसेन मुणिणा तह णय चक्कं पुणो रइयं ।। दुःषम काल रुपी आंधी से मंसार सागर से पार उतारने वाला जहाज के समान जो नय चक्र चिरकाल से नष्ट हो गया था उसे देवसेन मुनि ने पुन: रचा । इससे सिद्ध होता है कि नयचक्र विषयक उस समय शास्त्र था परंतु दुःकाल के कारण वह शास्त्र नष्ट होने से धर्म वात्सल्य से प्रेरित होकर जिन शासन की रक्षा प्रसार प्रचार के लिये एवं मिथ्या नयों का निरसन करने के लिये आचार्य श्रीने संसार से पार उतारने के लिये जहाज के समान, एक नवीन नय चक्र रचा। जैन धर्म एक पंथ व वाद नहीं है जैन धर्म वस्तू स्वभाव सहज सरल स्वभाव प्राकृतिक धर्म है । वस्तु सत्त स्वरूप होने से त्रिकाल अवाधित एवं शाश्वत है । वस्तु अनादि अनंत है एवं जैन धर्म वस्तु स्वभाव धर्म है उसी कारण जैन धर्म शाश्वतिक अनादि अनंत प्राकृतिक सहज सरल धर्म है । प्रत्येक वस्तु अनंत गुण पर्याय होने से प्रत्येक वस्तु अनेकान्तात्मक है इसलिये जैन धर्म भी अनेकान्तात्मक है । अनंत गुण पर्यायात्मवा वस्तु को जानने के लिये अनंत ज्ञान भी चाहिये।
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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