SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 475
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६० भाव-सग्रह अथवा जानन् त्यजति सर्वावश्यकानि सुत्रबद्धानि । हितेन भवति त्यस्तः स्वागमो जिनवरेन्द्रस्य । आयमचाए चत्तो परमप्पा होइ तेण पुरिसेण । परमप्पय चायेण य मिच्छत्तं पोखियं होई ।। आगमे त्यक्ले त्यक्तः परमात्मा भवति तेन पुरुषेग । परमात्मनः त्यागेन मिथ्यात्वं पोषिस भवति ।। ६०८ ।। अर्थ- अथवा जो साधु जान बूझ कर सिद्धांत सूत्रों में बाह हुए आइसों का कर देता है। आरश्यकों को नहीं करता वह साधु भगवान जिनेन्द्र देव के कहे हुए आगम का ही त्याग कर देता है एसा समझना चाहिये तथा यह बात भी निश्चित है कि जिसने आगम का त्याग कर दिया उसने परमात्मा का भी त्याग कर दिया और पर. मात्मा का त्याग करने से वह पुरुष मिथ्यात्व की ही पुष्टि करता है इसमें किसी प्रकार का संदेह नहीं है । भावार्थ- आगम सब भगवान जिनेन्द्र देवका कहा हुआ है इसलिये जो पुरुष आगम को नहीं मानता वह पुरुष भगवान जिनेन्द्र देव को भी नहीं मानता वह पुरुष मिथ्या दष्टि ही समझा जाता है । इसलिये आगम की अवहेलना करना महा. पाप माना जाना है। एवं णामण सया जावण पावेहि णिवलं मागं । मण संकप्प विमुक्कं तावासय कुणह वयसहियं ।। एवं ज्ञास्वा सदा यावन्न प्राप्नोति निश्चलं ध्यानम् । मनः संकल्पधिमुक्तं तावदावश्यक कुर्यात् नासहितम् ।।६०९।' अ- यही समझ कर मुनियों को उचित है कि जबतक मनके गंवाल्य विकल्पों से रहित होकर निश्चल ध्यान की प्राप्ति नहीं हाती तव तक उनको छहों आवश्यक प्रतिदिन अवश्य करते रहना चाहिय तथा अपने अन्य समस्त व्रतों का पालन करते रहना चाहिये आगं आवश्यक आदि कार्यों का फल बताते है । आवासयाइ कम्म विज्ञावच्छ व बाण पूजाई । जं कुणइ समविट्टी तं सरवं णिज्जर णिमित्तं ।
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy