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________________ २३८ माव-संग्रह अर्थ- कुपात्र दान देने वाले मनुष्य जो मरकर कुभोग भूमि में उत्पन्न होते हैं और वहां से आकर भवन वासी व्यंतर ज्योतिषियों में उत्पन्न होते है वहां की भी आयु पूर्णकर वे फिर मनुष्य वा तिर्यच होते है और वहां भी अनेक प्रकार के पापकर नरकमे जाकर पडते हैं । घंडालभिल्ल छिपिय डोंब य करलाल एव माईणि | दीसंति सिल पत्ता कुछिय पत्तरस दाणण ।। चांडालभिल्लाछपक डोम्ब फलवारा एवमादिकाः । दृश्यन्ते ऋद्धिप्राप्ताः कुत्सितपात्रस्य दानेन ।। ५.३ ।। अर्थ- वर्तमान में जो चांडाल मील छोपो दाग कलालादि निम्न थंगी के लोग धन और विभूती आदि से परिपूर्ण दिखाई दी है वे सब कुत्सित पात्रों को दान देने में ही बनी होती है । भावार्थ-- निम्न श्रेणी के लोगों में धन विभूति का होना कुपात्र दान' का ही फल ।। केई पुण गय तुरया गेहेरायाण उग्णई पत्ता । दिस्सति मञ्च ल.ए कुच्छिय पसस्स वाण ।। केचित्पुनः गजतुरगा गृहे राज्ञां उन्नति प्राप्ताः । दृश्यन्ते मर्त्यलोके कुत्सित पात्रस्य दानेन ।। ५४४ ।। अर्थ- इस मनुष्य लोक में राजाओं के घर जो कितने ही हाथी घोडे आदि उन्नति को प्राप्त हुए दिखाई देते है बहुत सुखी दिखाई देते है वह सब कुपात्र दान देने का फल समझना चाहिए । केई पुण विव लोए उपक्षण्णा बाहणतणेण ते माया । सोसंति जाइ दुक्खं पिच्छिय रिद्धी सुदेवाणं ।। केचित्पुनः स्वर्गलोके उत्पन्ना वाहनरवेन ते मनुजाः । शोचन्ति जाति दुःखं प्रेक्ष्य ऋद्धि सुदेवानाम् ॥ ५४५ ।। अर्थ- कुपात्रों को दान देने वालों में से कितने ही मनुष्य स्वर्गलोक में भी उत्पन्न होते है परन्तु वहां पर दे वाहन रूपसे उत्पन्न होते है अन्य वडे देवों के वाहन बनकर रहते है । इसलिये वे बडे देवों की ऋद्धियों को देखकर अपनी बात रूम जाति के दुःख का शोक करते रहते है।
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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