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भाव-सग्रह
नहीं होते वृक्षों के नीचे रहा करते है और नग्न रहते है।
पल्लोबम आउस्सा वत्थाहरणेहि वज्जिया णिच् । तरुपल्लव पुस्करतं कलापस लेब भरलंति ।। ५३६ ।। वल्योपमायुषः वस्त्राभरणेन वजिता नित्यम् ।
तरुपल्लव पुष्परसं फलानां रसं चंद्र भक्षयन्ति ।। ५३६ ।।
अर्थ- इन मनुष्यों की आयु एक पल्य की होती है तथा ये लोग सदा काल वस्त्राभरण से रहित होते है और वृक्षों के पत्ते, सलों का रस और फलों का रस भक्षण करते रहते है।
वोवे कहिं पि मणु या सक्कर गुड खंड सणिहा भूमी । भक्खंति पुट्ठि जणया अइसरसा पुख्न कम्मेण ।। ५३७ ।। द्वोपे कुत्रापि मनुजाः शर्करा गुरखण्डसन्निभां भूमिम् । भक्षयन्ति पुष्टिजनका अतिप्तरसां पूर्वकर्मणा ।। ५३७ ।।
किसी किसी द्वीप की भूमि गुड शक्कर और खांड के समान मीठी होती है, पौष्टिक होती है और अत्यन्त सरस होती है । इसलिये उन द्वीपों में उत्पन्न होने वाले मनुष्य अपने पूर्व वामं के उदय से उसी भूमि की मिट्टी को खाकर रहते है ।
केई गय सीह मुहा केई हरि महिस कवि कोल मुहा । केई आवरिस मुहा केई पुण एम पाया य ।। ५३८ । केचित् गर्जासह मुखाः केचिद्धरिमहिष केपि कोलूकमुखा ।
केचिदादर्शमुखाः केचित्पुनः एकपात्राश्च ।। ५३८ ।।
अर्थ- उन द्वीपों में रहने वाले मनुष्यों मे कितने ही मनुष्यों के ... मुख हाथी के मुख के समान होते है कितने मनुष्यों के मुख सिंह के मख के समान होते है, कितने ही मैंसा के से मुखवाले होते है कितने ही सूअर के से मुखवाले होते है और कितने ही मनुष्य बंदर के से मुख वाले होते है और कितने ही मनुष्य' दर्पण के समान मुखवाले होते है । इसके सिवाय कितने ही मनुष्य एक पैर वाले होते है । तथा