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________________ भाव-संग्रह २२३ . १ बतलात है ! बा पात्र में श्रद्धा रखता हो, दान देने की शक्ति रखता हो, जिसके लोभ का त्याग हो और दान देने में क्या क्या करना चाहिये इस बात का जिसको पूरा ज्ञान हो वही उत्तम दाता कहलाता है । भावार्थ-दाता मे ये सात गण अवश्य होने चाहिये । आगे पात्रों के भेद बतलाते है । तिविहं भणंति पत्तं मझिम तह उत्समं जहणं च । उत्तम पत्तं साहू मझिमपत्तं च सायया भणिया । त्रिविध भणन्ति पात्रं मध्यम तथोत्तमं जघन्यं च । उत्तमपात्रं साधुः मध्यमपात्रं च श्रावका भणिताः ।। ४९७ ।। अविरइ सम्मादिछी जहण्ण पसं तु अक्खियं समये । गाउण पत्तविसेस बिज्ज दाणाइ भत्तीए ॥ अधिरत सम्यग्दृष्टि: बि.या दुकन्धित : ज्ञात्वा पात्रविशेषं दद्यात् दानानि भक्त्या ।। ४९८ ॥ अर्थ- पात्र तीन प्रकार के है उत्तम पात्र मध्यम पात्र और जघन्य पात्र | इनमें उत्तम पात्र रन्नत्रय को धारण करने वाले निर्गन्ध मुनि है मध्यम पात्र अणुव्रती श्रावक हे और जघन्य पात्र अविरत सम्यग्दृष्टि पुरुष है । ऐसा शास्त्रों में निरूपण किया है । इसलिये भव्य जिवों को इन पात्रों के भेद और विशेषता समझकर भक्ति पूर्वक दान देना चाहिये । आगे जैसा पुरुष जैसे पात्र को दान देता है उसको वैसा ही उत्तम फल मिलता है यही दिखलाते है। मिछावठी दुरिसो दाणं जो देइ उसमे पत्ते । सो पावइ घर भोए फुड उत्तम भोय भूमीसु ।। मिथ्यावृष्टिः पुरुषो शनं यो ददाति उत्तमे पात्रे । स प्राप्नोति घर भोगान स्फुटं उत्तमभोग ममीषु ॥ ४९९ ।। अर्थ- यदि कोई मिथ्यादृष्टी पुरुष किसी उत्तमपात्र को दान
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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