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________________ भाव-संग्रह अथवा एफोनपंचाशान् कोष्ठान् कृत्वा विपुलरेखाभिः । अतिरोच्यक्षराशि क्रमेण विनिवेशय सर्वाणि ॥ ४६६ ।। ता णिसवं जहयारं मजिसम ठाणेसु ठाइ जुत्तीए । बेढई बीएण पुणो दलमंडल उयरमजात्यं ।। तावत् निवेशय यथाकारं मध्यमस्थानेषु स्थापत्य युक्त्या । वोटय बीजेन पुनः इलामण्डलोदरमध्यस्थम् ।। ४६७ ।। अथवा अनेक रेखाओं से एक उनचास कोठे का यन्त्र बनाना चाहिये । मध्य में पंच परमेष्ठी का नाम देना चाहिये । तथा फिर अनुक्रम से अम्ल वधू आम्ल ब! इस प्रकार समस्त अक्षरों के मन्त्र लिखना नायि । जैसा कि यन्त्र में लिखा है । फिर तीन रेखाओं से घरा मण्डल लिखना चाहिये । इस प्रकार यन्त्र बनता है । एए जंतुद्धारे पुज्जइ परद्विपंच अहिहाणे । इच्छइ फलदायारो पावघणपउलहंतारो ।। एतान् यंत्रोद्धारान् पूजयेत् परमेष्ठिपंचाभिधानान् । इच्छित फलदातून पापधनपटलहन्तन ।। ४६८ ।। अर्थ- ये यंत्रोद्वार पंच परमेष्ठी वाचक है इनकी पूजा करने से इच्छानुसार फल की प्राप्ति होती है, तथा पाषरुपी घने बादलों के समूह सब नष्ट हो जाते है। इसलिये इन यंत्रों के द्वारा पंच परमेष्ठी की पूजा प्रति दिन करनी चाहिये । अविहच्चण काउं पुख्य पउत्तम्मि ठावियं परिमा । पुज्नेह तग्गयमणो विधिहहि पुज्जाहिं भत्तोए ।। अष्टविधाचनां कृत्वा पूर्वप्रोक्ते स्थापिता प्रतिमाम् । पूजयेत् तद्गतमनाः विविधाभिः पूजाभिः भक्त्या ।। ४६९ ।। अर्थ- इस प्रकार अष्ट द्रव्य मे यंत्रों के द्वारा पंच परमेष्ठी की पूजा करके पहले अभिषेक के लिये विराजमान की हुई प्रतिमा में अपना मन लगाकर भक्ति पूर्वक अनेक प्रकार के द्रव्यों से अभिषेक बाद उन प्रतिमाओं की पूजा करनी चाहिये ।
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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