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भाव-मयह
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चसियरणं आइट्टी थं में गेहं च मंति कम्माणि । नानाजराणां हरणं कुणेइ तं माणजोएण || वशीकरण आकृष्टि स्तम्भनं स्नेहं शान्ति कर्म ।
नानाजराणां हरणं करोति तद्ध्यासयोगेन ।। ४५९ ।।
अर्थ- इन यंत्र मंत्रों का ध्यान करने मे वशीकरण आकर्षण स्तंभन मांति कर्म स्नेह आदि सब मंत्र सिद्ध हो जाते है । इन्हीं मंत्रों का ध्यान करने से वशीकरण हो जाता है जिसको आकर्षण करना चाहो वह आकर्षित हो जाता है जिसका स्तंभन करना चाहो इसका स्तंभन हो जाता है रुवा जाला है जिसको शांत करना चाहो वह शांत हो जाता है बुढापा दूर हो जाता है तथा और भी अनेक प्रकार के लाभ हो जाते है।
पहरति । तस्स रिउणा सत्त मित्तत्तण च उबयादि । पुज्जा हवेह लोए सुबल्लहो परवरिदाण || प्रहरन्ति न तस्य रिपषः शत्रुः मित्रत्वं च उपयाति ।
पूजा भवति लोके सुवल्लभो नरवरेन्द्राणाम् ।। ४६० ।।
अर्थ- इस यंत्र मंत्र का ध्यान करने वाले पुरुष को उसका कोई भी शत्रु मार नहीं सकता, उसके सब शत्रु मित्र के समान हो जाते है, संसार में उसकी पूजा प्रतिष्ठा होतो है और वह पुरुष राजा महाराजाओं का तथा इन्द्रों का भी प्रिय वा वल्लभ होता है।
कि यहणा उत्तेण य मोक्खं सारखं च लभई जेण । केत्तिय मेत्तं एवं सुसाहियं सिद्ध चक्केण ।। कि बहुना उक्तेन च मोक्षः सौख्यं च लभ्यते येन । फियन्मात्रमेतत् सुसाधितं सिद्धचक्रेण ।। ४६१ ॥
अर्थ- अथवा बहुत कहने से क्या ? जिस सिद्ध चक्र के प्रताप से इस मनुष्य को मोक्ष के अनंत सुख प्राप्त होते है फिर भला ये संसारिक लाभ उसके सामने क्या पदार्थ है अर्थात् कुछ भी नहीं ।
आगे पंच परमेष्ठी चक्र को कहते है ।