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________________ भाव-संग्रह २०१ १ पूर्वे, ओं नहीं अग्नीन्द्राय स्वाहा २ आग्नेय्याम्, ओं नहीं यमाय स्वाहा ३ दक्षिणे, ओं नहीं नैऋत्याय स्वाहा ४ नेऋत्य दिशायां, ओं नहीं वरुणाय स्वाहा ५ पश्चिमे, ओं नहीं पवनाय स्वाहा ६ वायव्याम्, ओं नहीं कुबेराय स्वाहा ७ उत्तरे, ओं न्हीं ईशानाय स्वाहा ८ ईशाने, ओ हीं धरणीन्द्राय स्वाहा ९ पूर्वे, ओं नहीं सोमाय स्वाहा १० पश्चिमे । तदनंतर - पूर्वादिक चारों दिशाओं यथा चारों विदिशाओं में और दुबार पूर्व दिशाओं में इस प्रकार नौ स्थानों में प्रणवपूर्वक स्वाहा पर्वत आदित्यादिक नव ग्रहों को लिखना चाहिये और उनको पूर्व दिशा से प्रारंभ कर अनुक्रम से पश्चिम की ओर घूमते हुए पूर्व दिशा तक लिखना चाहिये । यथा ओं नहीं आदित्याय स्वाहा १ ओं नहीं सोमाय स्वाहा, ओं नहीं भीमाय स्वाहा, ओं नहीं बुधाय स्वाहा, ओं नहीं बृहस्पतये स्वाहा, ओं नहीं शुक्राय स्वाहा ओं नहीं शनैश्चराय स्वाहा ओं न्हीं राहवे स्वाहा, ओं नहीं केतवें स्वाहा । एवं जंतुद्धारं इथं मइ अक्वियं समासेण । से ऋिपि विहाणं गायध्वं गुरु पसाएण || एवं यंत्रोद्वारं इत्यं मया कथितं समासेन । शेषं किमपि विधानं ज्ञातव्यं गुरु प्रसादेन || ४५४ ।। अर्थ - इस प्रकार मैंने यह यंत्रोद्वार का स्वरूप अत्यंत संक्षेप से कहा है। इसका शेष विधान वा विस्तार गुरुयों के प्रसाद मे जान लेना चाहिये । अट्ठ विह अरणाए पुज्जेयब्वं इमं खु नियमेण । सुअंधेहि लिहियवं अपवित्तहिं || अष्टविधाचंनया पूजितव्यं इदं खलु नियमेन । द्वन्यः सुगन्धैश्च लेखितव्यं अति पवित्रः ।। ४५५ । अर्थ - इन यंत्रों को पवित्र धातुओं पर अत्यंत पवित्र और सुगंधित द्रव्यों से लिखना चाहिये । तदनंतर नियमपूर्वक आठों द्रव्यों से प्रति दिन पूजा करना चाहिये । आगे इसका फल बतलाते है ।
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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