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भाव-संग्रह
म्ही काल्यं स्वाहा ७ ओं नहीं महाकाल्यै स्वाहा ८ ओं -हीं ज्वाला मालिन्यै स्वाहा ९ ओं न्हीं मानव्य स्वाहा १० ओं न्हीं गौर्यै स्वाहा ११ ओं -हीं गांवाय स्वाहा १२ ओं -ही नैराटचे स्वाहा १३ ओं न्हीं अनन्त मत्यै स्वाहा १४ ओं नहीं मानसी देव्यै स्वाहा १५ ओं न्हीं महा मानसी देव्य स्वाहा : शाहीं त्याय नाहा १४ ओं म्ही विजयाय स्वाहा १८ ओं न्ही अपराजितायै स्वाहा १९ ओं ही बहुरूपिण्यै स्वाहा २० ओं -हीं चामुंडाय रवाहा २१ ओं न्हीं कूष्मांडिन्यै स्वाहा २२ ओं व्ही पद्मावत्यै स्वाहा २३ ओं न्हीं सिद्धायिन्यै स्वाहा २४ इस प्रकार चौवीस दल कमल को भर देना चाहिये ।
चीवीस दल कमल के बाहर वलय के वाद बत्तीस दल कमल है। उसमे भी पूर्व दिशा से प्रारम्भ कर अनुक्रम से बत्तीस इन्द्रों को ब्रह्म माया बीज से प्रारंग कर हामांत लिखना चाहिये अर्थात् जिसके आदि मे ओं न्हीं यह ब्रह्म और माया वीज हो तथा मध्य मे चतुर्थी विभक्ति सहित देवी वा इन्द्र का नाम हो और अंत में होमात अर्थात् होम के अंत मे कहे जाने वाला स्वाहा शब्द हो इस प्रकार सब देव देवियों को स्थापन करना चाहिए । यथा ओं -हीं असुरेन्द्राय स्वाहा १ ओं ही नागेन्द्राय स्वाहा २ ओं न्हीं विद्युदिन्द्राय स्वाहा ३ ओं न्हीं सुपर्णेन्द्राय स्वाहा ४ ओं न्हीं अग्नीन्द्राय स्वाहा ५ ओं नहीं बातेन्द्राय स्वाहा ६ ओं म्ही स्तनितेन्द्राय स्वाहा ७ ओं ही उदधीन्द्राय स्वाहा ८ ओं न्हीं डीपेन्द्राय स्वाहा ९ ओं हीं दिगिन्द्राय म्बाहा १० ओं न्हीं किन्नरेंद्राय स्वाहा ११ ओं ही किंपुरुषेन्द्राय स्वाहा १२ ओं न्हीं महोरगेन्द्राय स्वाहा १३ ओं -हीं गंधर्वेन्द्राय स्वाहा १४ ओं -हीं यक्षेन्द्राय स्वाहा १५ ओं रहीं राक्षसेन्द्राय स्वाहा १६ ओं न्हीं भूतेन्द्राय स्वाहा १७ ओं ही पिशाच्चेन्द्रीय स्वाहा १८ ओं न्हीं चन्द्रेन्द्राय स्वाहा १९ ओं न्हीं आदित्येन्द्राय स्वाहा २० ओं न्हीं सौधर्मेन्द्राय स्वाहा २१ ओं ही ईशानेन्द्राय स्वाहा २२ ओं न्हीं सानत्कुमारेन्द्राय स्वाहा २३ ओं न्हीं माहेन्द्राय स्वाहा २४ ओं न्हीं ब्रह्मेन्द्राय स्वाहा २५ ओं न्हीं लांतवेन्द्राय स्वाहा २६ ओं न्हीं शुक्रेन्द्राय स्वाहा २७ ओं न्हीं शसारेन्द्राय स्वाहा २८ ओं ही आनतेन्द्राय स्वाहा २१ ओं न्हीं प्राणतेन्द्राय स्वाहा ३० ओं ही आरणेन्द्राय स्वाहा