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भाव-संग्रह
अर्थ - इसके सिवाय गुरु के उपदेश से शांति चक्र का उद्धार कर उसकी भी पूजा करनी चाहिए। जो इस प्रकार है:- बीच में कि का रखकर वलय देकर उसके बाहर आठ दल का कमल बनावे फिर वलय देकर सोलह दल का कमल बनाये फिर वलय देकर उसके बाहर चौबीस दल का कमल बनावे फिर बलब देकर बत्तीस दल बा कमल बनावे | उसके मध्य में कणिका पर मंत्र सहित अरहंत परमेष्ठी लिखे | चारों दिशाओं में अन्य परमेष्ठियों को लिखे विदिशाओ में सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र तप लिखे । बाहर आठ दलों में जया आदि
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कोण में 'ओं न्हीं जंभायै स्वाहा, नैऋत कोण में ओं न्हीं मोहाय स्वाहा' वायव्य कोण में ओं न्हीं स्तंभायै स्वाहा' तथा ईशान कोण में ओं नहीं स्तभिन्यै स्वाहा' लिखना चाहिए इन सब मंत्रों को प्रणब माया बीज पूर्वक होमांत लिखना चाहिए। इस प्रकार कणिका के बाहर का अष्टदल कमल भर देना चाहिए ।
उसके बाहर वलय के बाहर सोलह दल का कमल हैं उसमे पूर्व दिशास प्रारंभ कर अनुक्रम से सोलह विद्या देवियों के नाम लिखना चाहिए। यथा- ओं नहीं रोहिण्यै स्वाहा १ ओं नहीं प्रज्ञप्त्यै स्वाहा २ ओं नहीं वज्रशृंखलायें स्वाहा ३ ओं न्हीं वज्रांकुशायै स्वाहा ४ ओं नहीं अप्रतिचक्रायं स्वाहा ५ ओं न्हीं पुरुषदक्षायै स्वाहा ६ ओं नहीं काल्यै स्वाहा ७ ओं नहीं महाकाल्यै स्वाहा ८ ओं नहीं गाय स्वाहा ९ ओं नहीं गोस्वाहा १० ओं नहीं ज्वालामालिन्यै स्वाहा ११ ओं न्हीं बराइय स्वाहा १२ हीं अच्युताय स्वाहा १३ ओं नहीं अपराजितायै स्वाहा १४ ओं न्हीं मानसी देव्ये स्वाहा १५ ओं नहीं महा मानसी देव्य स्वाहा १६ इस प्रकार सोलह कमल दल भर देने चाहिए ।
तदनंतर सोलह दल कमल के बाहर चौबीस दल का कमल है उसमे पूर्व दिशा से प्रारंभ कर अनुक्रम से चौबीस शासन देवियों का स्थापना करना चाहिये । यथा- ओं न्हीं चक्रेश्वरी देव्यं स्वाहा १ ओ नहीं रोहिण्यै स्वाहा २ ओं नहीं प्रज्ञप्त्यै स्वाहा ३ ओं न्हीं वज्रशृंखला स्वाहा ४ ओ ह्रीं पुरुषदत्ताये स्वाहा ५ ओं नहीं मनोवेगायै स्वाहा ६ ओं