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________________ भाव-संग्रह २०५ शान्ति चक्र यंत्रोद्धार: मध्य मे कणि का लिखना चाहिये फिर वलय देकर उसके बाहर चार दिशा और चारों विदिशाओं मे अष्टदलाकार कमल बनाना चाहिये। फिर उसके बाहर बलय देकर सोलह दल का कमल बनाना चाहिये । फिर उसके बाहर वलय देकर चौवीस दलका कमल बनाना चाहिये । फिर उसके बाहर वलय देकर वत्तीम दल का कमल बनाना चाहिय । उसके बाहर वलय देकर पूर्व दक्षिण पश्चिम उत्तर इन चारों दिशाओं मे भद्र के आकार चार द्वार वा दरवाज बनाना चाहिये। फिर एक एक द्वार के दोनों ओर तीन नीन त्रिशुलाकार बन लिखना चाहिये । इस प्रकार चारों ओर के उन आठ त्रिशूलों के चौवीस शोभ (यक्षों के स्थान) करने चाहिये । फिर नारों विदिशाओं के स्खल के बाहर दो दो अलग अलग क्षिति मंडल के लिय त्रिशलाकार बन्न बनाना नाहिये और उसके आठवन लिखना चाहिये । इस प्रकार क्षिति मंडल माहित शांति चक्र यंत्र का उद्धार करना चाहिये । सबसे पहले कणिका के मध्य भाग से - ओं ही अर्हद्भ्यो नमः। लिखना चाहिये । फिर उसी कणि का मे इस मंत्र के पूर्व की ओर 'ओं न्हीं सिद्धभ्यो नमः' यह मत्र लिखना चाहिये । फिर उसकी दक्षिण दिशा में ‘ओं हीं मूरिभ्यो नमः' लिखना चाहियं । पश्चिम को ओर ओं हों पाठकेभ्यो नमः' लिखना चाहिय । उत्तर की ओर के दल में 'ओं न्हीं साधुभ्यो नमः लिखना चाहिये । तदनंतर उसी कणिका में चार विदिशाओं के चार दलों में से अग्नि कोण के दल में " ओं ही सम्यग्दर्शनाय नमः " नैऋत कोण में "ओं -हीं सम्यग्ज्ञानाय नमः " वाय कोण मे 'ओं न्हीं सम्यक् चारिथाय नमः' और ईशान कोण में “ओं न्हीं सम्यकतपसे नम:" लिखना चाहिये । यह कणिका मे बने हुए नौ कोठों का उद्धार है। इस कणिका के बाहर जो अष्ट दलाकार कमन है उसमें से पूर्व के दल मे 'ओं न्हीं जयाय स्वाहा' दक्षिण के दल में 'ओं ही विजयाये स्वाहा' पश्चिम के दल मे ' ओं ही अजितायै स्वाहा' उत्तर के दल में ओं ही अपराजितायै स्वाहा' लिखना चाहिये। फिर अग्नि
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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