SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 419
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ SAX चः पुनः वृहद्दुद्धारो सर्वो भणितो हि सिद्धचऋष्य । सोऽत्र न उद्धर्त्तव्यः इवानों सामग्री न ख तस्य ॥१४४८ ।। भाव-संग्रह ' अर्थ - इसके सिवाय एक सिद्ध चक्र का बृहत् उद्धार और भी है महा उद्धार वा महा पुजा है जो अन्य शास्त्रों में कही है परंतु उसक उद्धार वा महा सिद्ध चक्र पूजा इस समय नहीं करना चाहिये 1 क्योंकि इस समय उसकी पूर्णं सामग्री प्राप्त नहीं होती । आगे शान्ति च विधान कहते है । जय पुज्जइ को वि णरो उद्घारिता गुरुबएसेा । अट्ठ दल विजण तिजणं चउग्गुणं वाहिरे क यदि पूजयति कोपि नर उचार्य गुरूपदेशेन | अष्ट दल द्विगुण त्रिगुणं चतुर्गुणं वाह्येकजे ॥ ४४९ ।। मझे अरिहं देवं पंचपरमेट्ठिमंतसं तुतं । लहि ऊण कण्णियाए अट्ठदले अट्ठवेवीओ || मध्ये अहं देवं पंचपरमेष्ठि मंत्रयुक्तम् । लिखित्वा कणिकाया अष्टवले अष्टवेवोः ॥ ४५० ।। सोलह बलेसु सोलह विज्या वेबीज मंतसहियाओ । चडवीसं पत्ते सु य जक्ता जन्खी य चडवीसं ।। षोडश दलेषु षोडश विद्यादेवी: मंत्र सहिताः । चतुविशति पत्रेषु च यज्ञान् यशश्च चतुविशतिम् ।। ४५१ ।। बत्तीला अमरिंदा लिह बत्तीस कंज पत्तेसु । यि निय मंस पडत्ता गहर वलयेण वेढे द्वात्रिशलममरेन्द्रान लिखे विशत्जपत्रेषु । निज निज मंत्र प्रयुक्तान् गणधर वलयेनः वेष्टयेत् ।। ४५२ । सत्तपयारा रेहा सतवि बिलिह बजजसजसा । चरंसो च दारा कुपण पयसे जुतीए । . सतप्रकाराः रेखाः सप्तापि बिलियेत् या संयुक्ताः । चतुरंगांवरान् कुर्यात् प्रमानेन युत्तथा ॥ ४५३
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy