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________________ भाव-मग्रह स्नपन कारयित्वा पुनः अमलं गन्धोदकं च वन्दित्वा । उद्वर्तनं च जिनेन्द्र कुर्यात काश्मीरमलय : ॥ ४४२ ।। अर्थ- इस प्रकार अभिषेक कर निर्मल गंधोदक की बंदना करनी चाहिये और फिर काश्मीर केसर तथा चंदन आदि मे भगवान् का उद्वर्तन करना चाहिये । अभिषेक के अनन्तर चन्दन केसर आदि द्रव्या को धप बना बार उससे प्रतिमा का उबटन करना चाहिये । फिर कोण कलशों तथा पूर्ण कलश से अभिषेक करना चाहिये। यह विधि अत्यंत मक्ष ने कही है । इसकी पूर्ण विधि अभिषेक पाठ में जान लेनी चाहिये । आलिहउ सिद्धधनकं पट्टे पञ्चेहि शिरुसुगहिं । गुरु उवएसेण फुडं संपएणं सब्बमंतेहिं ।। आलिखेत् सिद्धचक्र पट्टेद्रव्यः निसुगन्धः । गुरुपदेशेन स्फुटं संपन्नं सर्वमंत्रः ।। ४४३ ॥ अर्थ- तदनंतर किसी वस्त्र पर या किसी थाली में वा किसी पाट पर अत्यंत सुगंधित द्रव्यों से सिद्ध चक्र का मंत्र लिखना चाहिय । तथा गुरु के उपदेश के अनुसार उसे स्पष्ट रीति से सर्व मंत्रों से पूर्ण रूप देकर लिखना चाहिये ।। आगे उसमें बनाने की विधि बतलाते है । सोल दल कमल मन अरिहं विलिहे इबिंदुकलमाहियं । वंभेण वेढइत्ता उरि पुणु माय बीएण ।। षोडशबल कमल मध्ये अहं विलिखेत् वियुकलसहितम् । ब्रह्मणा देष्टयित्वा उपरि पुन: मायाबीजेन ॥ ४४४ ॥ सोलस सरेहि वेबउ देह वियप्पेण अठ्ठ बग्गा वि । अङ्केहि दलेहि सुपयं अरिहंताणं णमो सहियं ।। षोडश स्वरः वेष्टय देहविकल्पेन अष्टवर्गानमि । अष्टभिर्दलैः सुपर्व आर्हम्यो नमः सहितम् ।। ४४५ ।। • मायाए तं एवं तिउणं बेडेह अंकुसारूढ़ कुणह बरामंडलयं बाहिरयं सिद्धचक्कस्स .
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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