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________________ २०० माव-संग्रह दाऊण पुज्जश्व बलि अरुय तह य जपणभायं च । सवेसि मंते हि य बोयक्खर णाम जुत्तेहिं ।। दत्वा पूजाद्रव्यं वलि चहक तथा च यज्ञभाग च । सर्वेषां मंत्रश्च बीजाक्षरनामयुक्त: ।। ४४० ।। अर्थ- इन सब दिक्पालों को पूजा द्रव्य वलि नैवेद्य यज्ञभाग देना चाहिये । सवका बोजाक्षर सहित अलग अलग नाम लेकर मन पूर्वक आहवानन स्थापन सन्निधीकरण कर यज्ञ भाग प्रजा द्रव्य और नेवेद्य देना चाहिये । इनके स्थापन करने आदि के मत्र ये है । ओं नहीं आं क्रौं प्रशस्त वर्ण सर्व लक्षण संपूर्ण स्वायघ वाहन यवती सचिन्ह सहित इन्द्र देव अत्र आगच्छ आगच्छ संवौषट, अत्र तिष्ठ तिष्ठठिः ठः. अब मम सन्निहितो भव भव वषट् ओं आं क्रों -हीं इन्द्र देवाय इद्र अर्घ्य पाद्यं गंध पूष्पं दीपं धूपं चरुं बलि स्वस्तिकं अक्षतं यज्ञभागं च यजामहे यजामहे प्रतिगृह्यतां प्रतिगृह्यतामिति स्वाहा । यह मंत्र पढ कर अलग अलग देवों को स्थापन करना चाहिये । इन्द्र को पूर्व दिशा में स्थापन कर बांई ओर से आठों दिशाओं मे आठ देव अबो दिशामे धरणीन्द्र ऊर्ध्व दिशा में चन्द्र को स्थापन करना चाह्येि । शेष विधि अभिषेक पाठ मे से कर लेनी चाहिये । उपचारिऊण मंते अहिसेयं कुणउ देवदेवस्स । णीर घय सोर दहियं खिबउ अणुक्कमेण शिणसीसे ।। उच्चार्य मंत्रान् अभिषेक कुर्यात् देववेवस्य । नोरघृतक्षोरवधिकं क्षिपेत् अनुक्रमेण जिनशीः ।। ४४१ ।। अर्थ- तदनंतर देवाधिदेव भगवान् अरहंत देव का अभिषेक करना चाहिये । वह अभिषेक अनुक्रम से जल घी दुध दही आदि पदाथों से मंत्रों का उच्चारण करते हुए भगवान् के मस्तक परसे करना चाहिये । म्हवणं फाऊण पुणो अमलं गंधोदयं च वंदित्ता। सबलहणं च जिणिदे कूण: कस्सोर मलएहि ।।
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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