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माव-संग्रह
मायया तत्सर्वं त्रिगुणं वेष्टयेत् अंकुशारद्धम् । कुर्यात् धरामण्डलकं बाह्यं सिद्धचक्रस्य ।। ४४६ ।।
अर्थ-- एक सोलह दल का कमल बनाना चाहिय इसके मध्य में कणिका पर विदु और कला सहित ह लिखना चाहिये । फिर उसको ग्रह न स्वरों से बेष्टित करना चाहिये ।
अर्थात रमसे चारों ओर मोलद स्वर लिखना चाहिये। फिर उन सवको माया बीज से वेष्टित करना चाहिये अर्थात् तीन रेखाओं से वेष्टित करना चाहिये । तदनंतर सोलह दल का कमल बनाना चाहिये जिसमें आठ दल हो और आठ वर्ग हो । आठौं वर्गों में सोलह स्वर तथा कवर्ग चत्रर्ग आदि अक्षर हों तथा आठों दलों में · अर्ह झ्यो नमः' लिखना चाहिये । इन सवको तीन माया रेखाओं से बेष्टित करना चाहिये । ऊपर की ओर अंकुश से आरुद्ध' करना चाहिये । तथा फिर चारों ओर वाहर घरा मंडल बना देना चाह्यि ।
सिद्ध चक्र का विधान पूजा में इस प्रकार लिखा है - ऊर्वोघोरयुतं सबिंदुसपरं ब्रह्मस्वरावेष्टितं । वर्गापूरितदिग्गताम्बुजदलं तत्संधितत्त्वान्वितम् ।। अंतःपत्र टेष्वनाहतयुतं ही कार सवेष्टितं । देवं ध्यायति यः स मुक्ति सुभगो वरीभकंठीरवः ।।
अर्थात्-जिसके ऊपर और नीचे दोनों स्थानों में 'र' कार है तथा जो विदु' अर्थात् अर्धचंद्रकार कला सहित ऐसा 'स' से आगे का अक्षर 'ह' कार मध्य में लिखना । जिस ह कार के ऊपर र कार हो नीचे र कार हो और अर्द्ध चन्द्र वा अर्घ विदु ऊपर हो ऐसा नहीं मध्य में लिखना चाहिये । उस ही के चारो ओर वह न स्वर अर्थाथ् सोलह स्वर लिखना चाहिये । इतना सब तो वी चकी कणिका में लिखना चाहिये। फिर उस वणिका के चारों दिशाओं में और चारों विदिशाओं में आठ संधियां बना कर उन संधियों के मध्य में अष्ट दल आकार का कमल बनाना चाहिये। उन अष्ट दलो में अनुक्रम से अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ ल ल ए ऐ ओ औ अं अः क ख ग घ ङ च छ ज झ ट ठ ड ढ ण