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________________ -विषय पृष्ठ -विषय- पृष्ठ दान अभावसे दोष ५० परत फिनिवत्ति दान पूजादि कथा पाप बन्धका शुक्ल ध्यान कारण ९. पंचम कालम क्यानाव भुकेवली । पाप-पुःय ९३ हो सकते है? १३२ पुण्य का ना ९६ पाभ प्रियाओंमे कम निर्जरा १४२ सालम्धन एवं निरालाइन शान ९६ शुभाए पागका स्वरूप गृहस्यका उष्ट धर्मध्यान हो पाश्रवके कारण होनेका कारण २७ पुण्य फल अप्रमन गुण थान में मुनिओं को पापका स्वरूप निरालम्ब ध्यान ९८ पापानका कारण छवा गुणस्थान सकल संयमी १०० पाप बन्ध का कारण मनिका स्वरुप १०० सम्यग्दर्शन घातक व्यक्ति १४८ मनियों का कर्तव्य १०२ पास फल यम नियमोंका फल १०३ पाप अत्यन्त हेय है १५२ शोपयोग एवं पुण्यपार १. पुण्य त्याग करने योग्य व्यक्ति गद्धात्म भनि १५२ परमध्यान का पर्यायवाच। किनके पुण्य हय है। ११८ पाप भी उपादेय है वीतराग निर्विकला समाधी १२५ घ्यानावस्था-अप्रपत्त गुणस्थान पंचम मुणस्थानवर्ती मलम्थोंमें अपूर्वक ण गुणस्थान १६७ हाने योग्य ध्यान १२२ अनियनिकरण गुणस्थान ध्याताका लक्षण सूक्ष्मसांपराय मुणस्थान आज्ञाविचय धर्म यान १३३ उपशान्तमोह गुणस्थान अपायविचय धमध्यान १३३ क्षीणोह गत स्थान १६८ विपाकविचन धर्मध्यान १३४ जीवनमपत गुणस्थान सस्थानविचय धर्मध्यान १३४ शैलेश १६१ पत्रकाचविलकं वीचार शुक्लध्यान १३४ अरहत का विधाष वर्णन एकत्ववितर्क बोचार शुक्लध्यान १३५ सिद्धावस्था मूक्ष्मक्रिया प्रतिपाति शुक्लध्यान १३५ उपसंहार शब्दार्थ १७१
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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