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________________ ॥ श्री वीतरागाय नमः ।। - तस्य भुवणेषक गुरुणो णमो अणेर्गतकायस्स - देवसम देवसेन आचार्य का अद्वितीय व्यक्तित्व और कृतित्व परम जिनागम रहस्य ज्ञाता उभय भाषावित् नय चक्र संचारक धुरन्धर, अक्षुण्ण चारित्र पालनॅक धोर, मूल संघ कुन्द कुन्द आम्नाय के समर्थ पोषक एवं प्रचारक महा प्राज्ञ देवसेन आचार्य जैन धर्मके एक अलौकिक ज्योतिपुंज थे। उनके वर्तमान उपलब्ध निश्चय व्यवहार समन्वयात्मक अनेक बेजोड ज्वलन्त कृतिसे उनका व्यक्तित्व स्पष्ट रूप से प्रतिभाषित होता है। आचार्य प्रवर समन्वय अनेकान्तवादी होते हुए भी मिथ्या मत का सम्यक् खण्डन करके सत्य धर्म का प्रतिपादन स्पष्ट एवं निर्मग्र रुप से अपनी समस्त कृति में यत्र तत्र किये हैं। कृतित्वसेही व्यक्तिका व्यक्तित्व पहिचाना जाता है इस न्यायानुसार उनके द्वारा रचित वर्तमान उपलब्ध कुकृतियों के माध्यम से उनका व्यक्तित्व का हम अवलोकन करेंगे उनकेद्वारा रचितशास्त्र निम्नलिखित है। १) दर्शनसार २) नय चक्र ३) आलाप पद्धती ४) श्रुत भवन दीपक नय चक्र ५) तत्वसार ६) भावसंग्रह ७) आराधनासार, इतने शास्त्र उपलब्ध है। धर्मसंग्रह पुस्तक अप्राप्य है। १) दर्शनसार दर्शनसार एक लघुकृति प्राकृत दोहा बद्ध शास्त्र है। इसमें मूल आम्नाय के समर्थक प्रचारक एवं पोषक देवसेन आचार्य ने जैनाभासियोंका उत्पत्ति काल एवं उनके शिथिलाचार के बारे में ऐतिहासिक एवं प्रामाणिक वर्णन किये हैं। भाव संग्रह में आचार्यश्रीने समस्त मिथ्यामत एवं श्वेताम्बरो का सविस्तृत खण्डन किये हैं। दर्शनसार में भाचार्य श्रीने पांच जनाभासियोंका वर्णन किया है
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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