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________________ भाव-संग्रह १८७ अणिमा महिमा लघिमा प्राप्तिः प्राकाम्यं तथा चेशित्वम् । वशित्वं कामरूपं एतैः गुणैः संयुक्तः ॥ ४१० ॥ देवाय होय होणराण संपुष्णो । सहजाह्रण णिउतो अइरम्मो होइ पुणेण ।। देवाना भवति देहोऽत्युत्तमेन पुग्दलेन सम्पूर्णः । सहजा मरणनियुक्तोऽतिरम्योभवति पुण्येन || ४११ ॥ I अर्थ- देवों का शरीर पुण्य कर्म के उदय से अत्यंत पवित्र होता है, अत्यंत निर्मल होता है, अत्यंत सुंदर वर्ग होता है. उनके शरीर का स्पर्श गंध अत्यंत शुभ होता है, उगते हुए सूर्य के तेज के समान उनका तेज होता है, उनका शरीर अत्यंत सुंदर और सदा काल तरूण अवस्था को धारण करता है, अणिमा महिमा लघिमा प्राप्ति प्राकाम्य ईशत्व वशित्व कामरूप इन आठों गुगों से सुशोभित रहता है । अत्यंत उत्तम पुद्गलों से बना होता है । सब प्रकार से पूर्ण होता है । अत्यंत मनोहर होता है और अपनी स्थिती के अनुसार नियत समय पर हृदय से उत्पन्न हुए अमृत से परिपुष्ट होता है । देवों को ऐसा उत्तम शरीर पुण्य कर्म के उदय से ही प्राप्त होता है । ऊपर जो अणिमा महिमा आदि देवों के, शरीर के गुण बतलाये है उनका अर्थ इस प्रकार है। छोटे से छोटे शरीर को बना लेने की शक्ति होना अणिमा है, मेरु पर्वत से भी बड़ा शरीर बनाने की शक्ति होना महिमा है, वायु से भी हलका दारीर बनाने की शक्ति होना लघिमा है. पृथ्वी पर ठहर कर भी अपनी जंगली के अग्रभाग से मेरु पर्वत के शिखर को भी स्पर्श करने की शक्ति होना प्राप्ति है, जल में भूमि के समान गमन करने की शक्ति होना तथा भूमि मे जल के समान डूबना उछलना आदि की शक्ति होना प्राकाम्य हैं, तीनों लोकों की प्रभुता प्राप्त कर लेने की शक्ति होना ईशित्व है. समस्त जीवों को वश करने की शक्ति होना वशित्व है, तथा एक साथ अनेक रूप धारण कर लेने की अनेक शरीर बना लेने की शक्ति होना कामरूपत्व है । इस प्रकार देवों के शरीर में आठ ऋदियां होती है । :: उप्पण्णी कणयभए कायक्कतिहि भासिये भवणे : पेच्छतो रयणमयं पासायं कर्णय दितिल्लं ॥
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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