SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 401
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८६ अंतरमहुत्तमज्ये देहं चऊण माणसं कुणिमं । गिरहद्द उत्तमदेहं सुचरिय कम्माणु भावेण अन्तर्मुहुर्तमध्ये देह त्यक्त्वा मानुषं कुणिमम् । गृह्णाति उसमें देह सुचरितकर्मानुभावेन ।। ४०६ ।। अर्थ- ऊपर लिखा हुआ सम्यग्दृष्टी पुरुष अपने पुण्य कार्य के प्रभाव से इस घृणित मनुष्य शरीर का त्याग कर अंतर्मुहूर्त में ही स्वर्ग में जाकर उत्तम शरीर प्राप्त कर लेता है । चम्मं रुहिर मंसं मेज्जा आठ च तह बसा सुत्रकं । सिम्मं पित्तं अंतं मृत्तपुरौस व रोमाणि || चर्म रुधिर मांसं मेदोऽस्य व तथा वतां शुक्रम् । श्लेष्म पित्तं अत्रं मत्रं पुरीषं च रोमाणि ॥ ४०७ ।। अहं दंत सिरहा साली सेड्यं च मनिस आलास | गिद्दा तव्हा य जरा अंगे देवरण ण हि अस्थि || भाव-संग्रह नल दंत शिरानालालाः स्वेदकं च निमेषं आलस्यम् । निद्रा तंद्रा च जरा अंगे देवानां न हि सन्ति ॥ ४०८ ॥ अर्थ- चर्म ( चमडा ) रूधि, मांस, मेदा, हड्डी, चर्बी, शुक्र, (बी) कफ, पित्त, आंतें मल, मूत्र, रोम, नख, दांत, शिरा (नाडी नये । नाम, लार, परीना, नेत्रों को टिमिकार, आलस्य, निद्रा, तंद्रा और बुढ़ापा ये सब देवों के शरीर में कभी नहीं होते । सुइ अमलो वरवण्णो देहो सुह फास गंधसंपण्णो । वाल रवि तेयसरिसो चारुरूयो सदा तरुणो || शुचिः अमलो बरवर्णः देह: शुभस्पर्शयसम्पन्नः वालरवितेजः समृश: चारुस्वरुपः सदा तरुणः ।। ४०९ ।। अणिमा महिमा लहिमा पावइ पागम्स त य ईसत्तं । सयत कामरूवं एसियाई गुणो हि संजुतो ॥
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy