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________________ १५६ मात्र-मत्रह आयु श्चतुःप्रकार सुरनारक मनुष्य तियंगतिवद्धन् । हलि लिप्त पुरुष तुल्यं जीवे भयधारणम् समर्थम् ।। ३३५ ।। अर्थ- जिस प्रकार जिसका पांव । पैर ) काठ मे फंसा हुआ है, वह काठ उस पुरुष को कहीं जाने नहीं देता, वहीं शेख रखता है हम प्रकार जो कर्म एक ही शरीर मे रोक रबखे उसको आयु कर्म कहते : उसके चार भेद हैं देवाय, नरकाग्रु, मनुष्य आयु और तिर्यंच आयु । यः आय कम ही भव धारणा कराना हरता है । चित्तपडवविचित्तं गाणा णाहि बलणं णाम । तेणवइ संखगुणियं गइ जाइ सरोर आईहि ।। चित्रपटवत् विचित्रं नानानामभिः वर्तन लाम । त्रिनवति: संख्यगुणितं गतिजातिशरीरादिभिः ।। ३३६ ।। अअर्थ- जिस प्रकार किसी वस्त्रपर अनेक प्रकार के चित्र बनाने है उसी प्रकार जो गति जाति रीर आदी अनेक नामों को जो बनावे उसको नाम कर्म कहते हैं। उसके तिरानवे भद है। देवगति, नरक गति, मनुष्यगति, तिर्यंचगति, एकेन्द्रिय जाति, दोइन्द्रिय जाति, तेइन्द्रिय जाति, चौइन्द्रिय जाति, पंचेन्द्रिय जाति, औदारिक मारीर, वैक्रियिक मरोर, आहारिक शरीर, तेजस शरीर, कार्मण गरीर, औदारिक शरीगंगोपांग, वैक्रियक शरीरांगोपांग, आहारकशरीगंगापांग, स्थान निर्माण प्रमाण निर्माण, आहारक शरीर बंधन आदि पांचों शरीरो के पांच बंधन, औदारिकशरीर संचात आदि पांचों शरीरों के पांच सांवत, समचतुरस्त्र संस्थान, न्यग्रोध परिमंडल संस्थान, स्वातिक संस्थान, अवज्जन संस्थान, वामन संस्थान, हुंडक संस्थान, बज वापभ नाराच संहनन, बज़ नागच संहनन, नाराच संहनन, अद्धं नाराच संहनन, कोलक मनन, असंप्राप्तासृपाटका संहनन, कर्कश, मदु, गुरु, लघु स्निाग्ध, रूक्ष, शीत, उष्ण ये आठ पश, तिक्त, कटुक कषाय, आम्ल, मधुर में पांच रस, मुर्राम, असुरभि, दो गंध कृष्ण, नोल, रक्त, पीत, शुल्क ये पांच वर्ण नरक गत्यानु पूर्वी तिर्यग्गत्यानुपूर्वी मनुष्यगत्यानुपूर्वी देव गत्यानूपूर्वी अगुरुलघु, उपघात, परधात, आतप, उद्योत, उच्छ्वास, विहायोगति, प्रत्यक शरीर, सादारण, स, स्थावर, सभेग, दुर्भग, सुस्वर, दुःस्वर
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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