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________________ भा-राग्रह १५५ केवदर्शनावरण. निद्रा, निद्रानिद्रा, प्रचला, प्रचलाप्रचला, और स्त्यान गृद्धि ये नौ भेद दर्शनावरण के है । मोहेइ मोहणीयं जह महरा अब कोद्दमा पुरिस । तह अडवोस विभिण्णं णायन्वं जिणुवएसेण ।। मोहयति मोहनीयं यथा मदिरा अथवा कोद्रवं पुरुषम् । तथा अष्टाविंशति विभिन्नं झातव्यं जिनोपदेश ।। ३३३ ।। अर्थ- जिस प्रकार मद्य पुरुषों को मोहित कर देता है, अथवा कोदों पुरुषों को मोहित कर देता है उसी प्रकार जीवों को जो मोहित कर देता है उसको मोहनीय कर्म कहते है । उस मोहनीय के अट्ठाईस भेद भगवान जिनेन्द्रदेव ने कहे है । मोहनीय के दो भेद है दर्शन मोहनीय और चारित्र मोहनीय । दर्शन मोहनीय के तीन भेद है । मिथ्यात्व सम्यग्मिथ्यात्व और सम्यकप्रकृति मिथ्यात्व । चारित्र मोहनीय के पच्चीस भेद है । अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया, लोभ, अप्रत्याख्यानावरण क्रोध मान माया लोम, प्रत्याख्यानाबरण क्रोध मान माया लोभ, संज्वलन क्रोध मान माया लोभ । हास्य, रति, अति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुवेद, नपुंसक वेद । इस प्रकार मोहनीय कर्म के अट्ठाईस भेद है। महुलित्त स्वग्ग सरिसं दुविहं पुण होइ वेयणीयं तु । सायासाय विभिणं सुह वुक्खं देइ जोषस्स ॥ मधुलिप्त खंगसदृशं द्विविधं पुनः भवति वेदनीयं तु । सातासात विभिन्नं सुखदुःखे ददाति जीयाय ॥ ३३४ ।। अर्थ- जिस प्रकार शहदलपेटी तलवार की धार चाट लेने पर मीठी लगती है परंतु जीभ कट जाने से दुःख अधिक होता है उसी प्रकार जो कर्म जीवों को सुख दुःख देता है उसको वेदनीय कर्म कहते है । उसके दो भेद है साता वेदनीय और असाता वेदनीय 1 साता वेदनीय जीवों को सुख देता है और असाता वेदनीय दुःख देता है । आऊ चउम्पयारं सुर णारय मणुय तिरिय गइबद्धं । हडिलिस पुरिस तुल्लं जीवे भवधारण समत्थं ॥
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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