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________________ माव-संग्रह णाणाण दसणाणं आवरण वेयणीय मोहणियं । आउस्स णाम गोदं अंतरामाणि षयडीओ ।। ज्ञानाना दर्शनाना आवरणं वेदनीयं मोहनीयम् । आयुष्क नाम गोत्रं अन्तरायः प्रकृतयः ।। ३३० ।। अर्थ- ज्ञानाबरण, दर्शनावरण, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र और अंतराय ये आठ प्रकृतिबंध के भेद है। आगे इनके भेद कहते है । णाणाबरणं कम्मं पंचविहं होइ सुत्तणिहिट्ठ । जह पडिमोवरि खितं छायणयं होइ कप्पडयं ।। ज्ञानावरणं कर्म पचविधं भवति सूत्र निदिष्टम् । यथा प्रतिमोपरि क्षिप्तं छावनकं भवति कर्पटकम ।। ३३१ ।। अर्थ- जिस प्रकार किसी प्रतिमा के ऊपर कपडे का आच्छादन डाल देने में प्रतिमा ढक जाती है उसी प्रकार जो आत्मा के जान गण को ढक लेता है उसको ज्ञानावरण कर्म कहते है । उस ज्ञानावरण कर्म के पांच भेद है। मतिज्ञानावरण, धुतज्ञानावरण, अबधि ज्ञानावरण, मनः पर्यय ज्ञानावरण, और केवल ज्ञानावरण । ऐसा सिद्धांत सूत्र में वसण आवरणं पुण जद्द पडिहारो विणिवह वारम्नि । तं णविहं पउत्तं फुडत्थवाएहि सुत्तम्मि । वर्शनावरणं पुनः यथा प्रतिहारो वारयति द्वारे । तन्नवविधं प्रोक्तं स्फुटार्थवादिभिः सूत्रे ॥ ३३२ ।। अर्थ- जिस प्रकार प्रतिहार वा द्वारपाल द्वारपर बैठा रहता और राजा के दर्शन नहीं होने देता । जाने बालों को द्वारपर रोक देता है उसी प्रकार जो आत्मा के दर्शन गुण को प्रकट न होने दे, उसको ढकले, उसकों दर्शनावरण कर्म कहते हैं। उस दर्शना वरण कर्म के नौ भंद है। इस प्रकार स्पष्टवादी भगवान जिनंद्रदेव ने अपने सिद्धांत सुत्रों में कहा है । चक्षुदर्शनाबरण, अचक्षुदर्शनावरण, अवधिदर्शनावरण,
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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